अर्जुन के स्वभाव में कौन सी वृद्धि विद्यमान थी अर्जुन के स्वभाव में छात्रवृत्ति
विद्यमान थी
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विनोबा जी ने अर्जुन को महावीर कहा है, उनका यह कथन बिल्कुल सत्य है, क्योंकि अर्जुन में अठारह अक्षौहिणी सेना से अधिक शक्ति थी। वह सैकड़ों लड़ाइयों में अपना जौहर दिखा चुका था। उत्तर-गो ग्रहण के समय उसने अकेले ही भीष्म, द्रोण और कर्ण के दाँत खट्टे कर दिए थे। वह सदा विजय प्राप्त करने वाला और सब नरों में एक ही सच्चा नर था। वीरवृत्ति उसके रोम-रोम में भरी थी। उसके विचार कृत-निश्चय और कर्त्तव्य भाव से पूर्ण थे।
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