अरब स्प्रिंग के घटनाक्रम पर प्रकाश डालते हुए इसके परिणामों का परीक्षण कीजिए।
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तीन साल पहले अरब देशों में बदलाव की जो लहर आई थी उसे अरब क्रांति (अरब स्प्रिंग) के नाम से जाना गया था. इस क्रांति के तीन साल बाद भी अरब देशों में बदलाव की बयार थमी नहीं है.
अरब क्रांति में भले ही विद्रोहियों ने कई सत्ताएं बदल दीं लेकिन इसके कई नतीजे अप्रत्याशित रहे हैं.
बीबीसी के मध्यपूर्व संवाददाता केविन कोनोली ने ऐसे दस प्रभावों की पड़ताल की जिनकी इस क्रांति से उम्मीद नहीं की गई थी.
1. तूफ़ान झेल गए शाही परिवार
अरब क्रांति शाही परिवारों के लिए काफ़ी ठीक रही, कम से कम उससे बेहतर रही जितने की आशंका उनमें से कइयों को रही होगी.
खाड़ी के देशों की तरह ही जॉर्डन और मोरक्को के मामले में यह बात लागू हुई. इस समय गिरने या लड़खड़ाने वाली ज़्यादातर सरकारें कमोबेश सोवियत संघ की तर्ज पर एक दलीय थीं जिनके पीछे मज़बूत सुरक्षा व्यवस्था थी.
इसकी कोई एक वजह नहीं थी. एक ओर बहरीन को जहाँ सुरक्षा बलों के इस्तेमाल से कोई गुरेज़ नहीं था वहीं दूसरे देशों ने अन्य तरीक़ों का इस्तेमाल किया.
शाह अब्दुल्ला
जैसे क़तर ने बदलाव के शुरुआती महीनों के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के वेतनों में इज़ाफ़ा कर दिया. खाड़ी शासक असंतुष्टों को शांत करने की स्थिति में थे.
कम वेतन वाली नौकरियों में अधिकांश अप्रवासी कर्मचारी थे और अगर कोई काम की स्थितियों की शिकायत करता या राजनीतिक अधिकारों की बात उठाता तो उसे वापस भेजा जा सकता था.
ऐसा भी हो सकता है कि लोग अपने शाही शासकों से जुड़ाव महसूस करते हों, जो तानाशाहों के मामलों में नहीं हो सकता है चाहे वह कितना ही वैभवशाली जीवन जीएं.
2. अब अमरीका की नहीं चलती
अमरीका के लिए अरब क्रांति का अनुभव कुछ अच्छा नहीं रहा.
शुरूआती दौर में अमरीका के अपेक्षाकृत स्थिर मध्य पूर्व को लेकर चीज़ें साफ़ थीं. उसके मिस्र, इसराइल और सऊदी अरब के साथ विश्वसनीय रिश्ते थे.
लेकिन अमरीका मिस्र में हुई घटनाओं के साथ तारतम्य बिठा पाने में नाकाम रहा. पहले तो मोहम्मद मोर्सी का चुनाव हो गया और फिर सेना ने उन्हें अपदस्थ कर दिया.
हालांकि इस विफलता के लिए ओबामा प्रशासन को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. अमरीका चुनाव तो चाहता है, लेकिन परिणाम उसे रास नहीं आए- जिसमें मुस्लिम ब्रदरहुड की स्पष्ट साफ़ जीत हो गई.
और अब वह मिस्र में सैन्य विद्रोह नहीं चाहता है (कम से कम 21वीं सदी में). लेकिन संभवतः सैन्य समर्थन वाली सरकार से इसे कोई दिक्कत नहीं, जो इसराइल के साथ शांति के पक्ष में हो.
अमरीका अब भी एक महाशक्ति है, लेकिन अब वह मध्यपूर्व में चीजें उसकी मर्जी से नहीं चलती हैं. लेकिन अरब में वह अकेला नाकाम नहीं हुआ है.
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are bapp Rai itna bada ans..
koi kasai likh sakta h