अरस्तू के अनुसार त्रासदी के छह आवश्यक तत्व हैं: कथानक, चरित्र, विचार, संभाषण, संगीत और दृश्यता। इनमें से पहले तीन तत्वों को कलाकृति के आंतरिक तत्वों के रूप में लिया जा सकता है और शेष तीन तत्वों को उसके बाहरी तीन तत्वों के रूप में। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि बाहरी तत्वों की अपेक्षा आंतरिक तत्वों का महत्व कहीं ज्यादा हुआ करता है। इन आंतरिक तत्वों में भी सबसे पहले क्रम पर अरस्तु ने कथानक को रखा है। ध्यान देने की बात है कि अरस्तु ने कहानी की अपेक्षा कथानक शब्द का प्रयोग किया है। प्रायः हम कहानी और कथानक इन दोनों शब्दों को एक ही अर्थ में इस्तेमाल करने के आदी है, लेकिन देखा जाए तो उन दोनों में बहुत अंतर है। कहानी का किसी कृति की संपूर्णता से संबंध है जबकि कथानक का संबंध उस संपूर्ण कहानी में से लिए गए किसी प्रसंग विशेष से हुआ करता है। यदि इसी बात को लेकर यूनानी नाटकों का उदाहरण दिया जाए तो राजा ईडिपस की तीन चौथाई कहानी नाटक आरंभ होने से पहले ही घटित हो चुकी है। नाटककार ने मात्र राजा ईडिपस द्वारा सत्य का पता लगाने से सम्बन्ध घटनाओं को अपने नाटक का आधार बनाया है। स्पष्ट है कि उसने एक संपूर्ण रचना में से प्रसंग विशेष का चयन किया । अरस्तू का मानना है कि कथानक ही सबसे मुख्य तत्व है जिस पर बाकी सारे तत्व आश्रित रहते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो कथानक नाटक के शरीर की तरह है जिसमें बाकी सारे अंग जुड़े रहते है। यहाँ हम याद कर सकते हैं कि भारत ने भी नाटक के शब्दों को उसके शरीर की संज्ञा दी है। इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी भी नाटक की समीक्षा अथवा आलोचना के लिए कथानक ही उस पहली कड़ी का काम करता है जिसके माध्यम से हम उसके दूसरे तत्वों तक पहुँचते हैं।
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yes it's good... and keep it up
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bhari tatvo ki apeksha aantrik tatv ka mahtav jayda hota hai kyo
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