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'मेरे प्रीय लेखक' पर अनुच्छेद लिखो।
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प्रिय लेखक मुंशी प्रेमचंद जी का जन्म वाराणसी के निकट लमही नामक गांव में 31 जुलाई 1880 में हुआ था उनके पिता का नाम अजायब राय और माता का नाम आनंदी देवी था प्रेमचंद जी का वास्तविक नाम धनपत राय था उन्हें नवाब राय के नाम से भी जाना जाता था इनका बचपन अभावों में बिता 10वीं परीक्षा पास कर के इन्होंने 12वीं की परीक्षा में असफल हो जाने पर उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी विद्यार्थी जीवन में इनका विवाह हो गया था पत्नी के अनुकूल ना होने के कारण उन्होंने दूसरा विवाह किया था जिसका नाम शिवरानी देवी था मैट्रिक तक होने के बाद एक विद्यालय में अध्यापक हो गए थे उन्होंने स्वधाई रूप में स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करके शिक्षा विभाग में डिप्टी इंस्पेक्टर हो गए थे। असहयोग आंदोलन प्रारंभ होने पर इन्होंने नौकरी छोड़ दी थी इसके बाद उन्होंने साहित्य जीवन में प्रवेश करने पर सर्वप्रथम मर्यादा पत्रिका के संपादक रहे फिर इन्होंने प्रेस खोली लंबी बीमारी के बाद सन 1936 ई. में इनका निधन हो गया।
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उपन्यास:- मेरे प्रिय लेखक के उपन्यास इस प्रकार है कर्मभूमि ,कायाकल्प,निर्मला ,प्रतिज्ञा ,प्रेमाश्रम ,वरदान, सेवासदन, रंगभूमि ,गबन ,ओर गोदान।
उपन्यास:- मेरे प्रिय लेखक के उपन्यास इस प्रकार है कर्मभूमि ,कायाकल्प,निर्मला ,प्रतिज्ञा ,प्रेमाश्रम ,वरदान, सेवासदन, रंगभूमि ,गबन ,ओर गोदान।कहानी संग्रह:- नवनिधि, ग्रामय जीवन की कहानियां ,प्रेरणा ,कफन ,कुत्ते की कहानी, प्रेम प्रसून ,प्रेम पचीसी ,प्रेम चतुर्थी ,मनमोदक ,मानसरोवर, समर यात्रा, सप्त सरोज,अग्नि समाधि ,प्रेम गंगा और सप्त समना।
Answer:
हिंदी साहित्य में प्रेमचंद का कथाकार के रूप में विशिष्ट स्थान है। उन्होंने हिंदी उपन्यास और कहानी की विधाओं को नवरूप प्रदान किया। उनके इस योगदान के कारण हिंदी कथा साहित्य के उस युग को ‘प्रेमचंद युग’ के नाम से जाना जाता है। प्रेमचंद की रचनाओं में जीवन का यथार्थ रूप पहली बार इतने सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुआ था। उनकी इन रचनाओं को पढ़कर मैं उनका प्रशंसक बन गया हूँ। वे मेरे प्रिय लेखक बन गए हैं।
मेरे प्रिय लेखक का जन्म वाराणसी के निकट के गाँव लमही में 31 जुलाई सन् 1880 को हुआ था। उनके पिता मुंशी अजायबराय और माता आनंदी देवी धार्मिक विचारों के थे। प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपतराय था। वे सात वर्ष के थे तो उनकी माता का देहांत हो गया। उनके पिता ने दूसरा विवाह कर लिया। वे माँ के स्नेह से वंचित रहे। इसका आभास उनकी अनेक कहानियों से भी मिलता है।
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प्रेमचंद बचपन से ही अध्ययनशील थे। उनका विवाह पंद्रह वर्ष की उम्र में ही हो गया। उनकी पत्नी से कभी नहीं बनी। विवाह के एक वर्ष के पश्चात् उनके पिता का निधन हो गया। उन पर पारिवारिक दायित्व आ गया। यहीं से प्रेमचंद के जीवन का आर्थिक संघर्ष आरंभ हो गया। उन्होंने ट्यूशन पढ़ाकर स्वयं पढ़ाई की और घर का खर्च चलाया। उनके जीवन के संघर्षों की पीड़ाओं ने उन्हें सफल कथाकार बना दिया। सौतेली माता का दुर्व्यवहार, पत्नी की तुच्छ मानसिकता, निर्धनता भरा जीवन-इनसे उनका व्यक्तिगत जीवन अत्यंत कष्टमय हो गया।
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