अस्थिर सुख पर दुःख की छाया पंक्ति में दुख की छाया किसे कहा गया है और क्यों ?
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अस्थिर सुख पर दुख की छाया’ ‘अस्थिर सुख पर दुख की छाया’ क्रांति या विनाश की आशंका को कहा गया है। क्राति की हुंकार से पूँजीपति घबरा उठते हैं, वे अपनी सुख-सुविधा खोने के डर से दिल थाम कर रह जाते हैं। उनका सुख अस्थिर है, उन्हें क्रांति में दुःख की छाया दिखाई देती हैं ।
Explanation:
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‘बादल राग’ कविता में कवि ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ ने अस्थिर सुख पर दुख की छाया उस शोषण को कहा है, जो पूंजीपतियों और धनवानों द्वारा निर्धन, किसान, मजदूरों पर किया जाता है। समाज के कमजोर वर्ग गरीब, मजदूर के जीवन में सुख स्थिर नही होते है। इस सुख अल्पकालिक होते हैं, इन पर पूँजीपतियों, दबंगों और धनवान लोगों द्वारा किये जाने वाले शोषण की छाया सदैव मंडराती रहती है। इसलिये कमजोर और गरीब, श्रमिक वर्ग के लोगों के जीवन में सुख सदैव अस्थिर रहते हैं, पता नही कब इन पर दंबगों की कुदृष्टि पड़ जाये और ये दुख में बदल जायें।
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