असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था?
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असहयोग आंदोलन के एक तरह का प्रतिरोध बनने के निम्न कारण थे...
- असहयोग आंदोलन का आरंभ गांधी जी द्वारा किया गया था। यह एक तरह से तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध प्रतिरोध था, इसके अनेक कारण थे। असहयोग आंदोलन ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाए गए रोलेट एक्ट जैसे कानून को पारित करने के खिलाफ आरंभ किया गया था। रोलेट एक्ट कानून भारतीयों के खिलाफ था, इस कारण यह कानून का प्रतिरोध जन आक्रोश की अभिव्यक्ति बन गया।
- असहयोग आंदोलन जन सामान्य का प्रतिरोध इसलिए भी था, ब्रिटिश सरकार के प्रति जनसाधारण का प्रतिरोध इसलिए भी था, क्योंकि उस समय के अनेक राष्ट्रीय नेता उन अंग्रेज अधिकारियों को दंड दिलवाना चाहते थे, जिन्होंने जलियांवाला बाग के शांतिपूर्ण प्रदर्शन में प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलवा कर नरसंहरा करवाया था। इस कांड के कई महीन बीतने के बाद भी किसी भी उत्तरदायी अधिकारी को नहीं दंड नही दिया गया था।
- यह आंदोलन औपनिवेशिक शासक के विरुद्ध जनता का जनता का प्रतिरोध इसलिए था. क्योंकि ए आंदोलन खिलाफत आंदोलन को सहयोग करके देश के दो प्रमुख धार्मिक समुदायों हिंदू और मुसलमानों को मिलाकर सरकार के प्रति जनता के प्रतिरोध की अभिव्यक्ति का माध्यम बन गया था।
- इस आंदोलन के माध्यम से प्रतिरोध करने की प्रक्रिया के अंतर्गत सरकारी नौकरियों, उपाधियों, अवैतनिक पदों, सरकारी अदालतों, सरकारी संस्थाओं आदि का बहिष्कार किया गया। विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया। सरकार द्वारा आयोजित चुनाव सभा में भाग नही लेने का निर्णय लिया गया, सरकारी करों का भुगतान न करने का निर्णय लिया गया, सरकारी कानूनों का शांतिपूर्ण ढंग से पालन ना करने का भी निर्णय लिया गया। यह इस तरह के कार्य कर जनता ब्रिटिश शासन के प्रति अपना विरोध प्रकट करना चाहती थी।
- इस आंदोलन द्वारा प्रतिरोध करके सरकारी अदालतों का बहिष्कार करने के लिए सर्वसाधारण और वकीलों का आह्वान गांधी जी द्वारा किया गया। गांधीजी के आह्वान के कारण वकीलों ने अदालतों में जाने से मना कर दिया था।
- इस आंदोलन का व्यापक प्रभाव कई कस्बों और नगरों में काम करने वाले मजदूर वर्ग पर भी पड़ा और वे भी इस आंदोलन में सहयोग करने के लिए हड़ताल पर चले गए। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 1921 में 396 हड़तालें हुईं, जिनमें लगभग छह लाख मजदूर शामिल थे और 30 लाख कार्यदिवसों की हानि हुई।
- असहयोग आंदोलन का प्रभाव भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में भी दिखने लगा था। उदाहरण के लिए आंध्र की पहाड़ी जनजातियों ने वन्य कानून का उल्लंघन करना शुरू कर दिया। अवध के किसानों ने कर नहीं चुकाया। कुमायूं के किसानों ने ब्रिटिश अधिकारियों का सामान ढोने से मना कर दिया। इन सभी तथ्यों से पता चलता है कि असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध था, जो कि ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध जनसामान्य का प्रतिरोध था।
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