संविधान सभा ने भाषा के विवाद को हल करने के लिए क्या रास्ता निकाला?
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संविधान सभा के निर्माण के समय भाषायी विवाद के संबंध में अनेक विवाद हुये जो इस प्रकार थे...
- जब भारत का संविधान निर्माण किया जा रहा था, तब भाषा के मुद्दे पर संविधान सभा के सदस्यों में अनेक बार विवाद हुआ था। भारत एक बहुभाषी राष्ट्र था, जहां पर हर राज्य में अलग-अलग भाषाएं बोली जाती हैं। संविधान सभा के सामने उस समय राष्ट्र की एक भाषा बनाने का मुद्दा आया तो कई महीनों तक इस बात पर बहस होती रही और कई बार तनाव एवं वाद-विवाद की स्थिति बन गई।
- आरंभ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और गांधी जी दोनों हिंदुस्तानी भाषा के पक्षधर थे। वे हिंदुस्तानी भाषा को भारत की राष्ट्रीय भाषा बनाने के पक्षधर थे। हिंदुस्तानी भाषा वह भाषा थी जो हिंदी और उर्दू भाषाओं के मेल से बनी थी। यह भाषा ना तो संस्कृतनिष्ठ हिंदी थी और ना ही फारसीयुक्त उर्दू। बल्कि हिंदुस्तानी भाषा दोनों भाषाओं का मिलाजुला रूप थी।
- गांधी जी के मतानुसार हिंदुस्तानी भाषा ही हिंदू और मुसलमान को एकता के सूत्र में पिरो सकती थी। यह उत्तर से दक्षिण तक भारत के संपर्क का सूत्र बन सकती थी क्योंकि यह भारत के विशाल भूभाग द्वारा बोले जाने वाली भाषा थी।
- कालांतर में हिंदुस्तानी भाषा के स्वरूप में परिवर्तन आने लगा और हिंदी और उर्दू भाषाएं दोनों एक दूसरे से दूर होने लगी और यह भाषाएं धर्म के साथ जुड़ती गईं। हिंदी संस्कृनिष्ठ होकर हिंदू धर्म से जुड़ती गई तो उर्दू फारसी के प्रभाव में आकर मुस्लिमों की भाषा करलाने लगी।
- संविधान सभा के अनेक सदस्य हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाना चाहते थे। संयुक्त प्रांत के एक कांग्रेसी सदस्य और वी. आर. धुलेकर ने संविधान सभा के प्रारंभिक सत्र में हिंदी को संविधान निर्माण की भाषा के रूप में प्रयुक्त किए जाने की जोरदार मांग की, तो उनकी इस मांग का कुछ अन्य सदस्यों द्वारा विरोध किया गया। इन सदस्यों द्वारा यह तर्क दिया गया कि हिंदी को पूरे भारत में सभी लोग नहीं समझते और संविधान सभा के सदस्य भी हिंदी नहीं जानते। इसलिए हिंदी संविधान निर्माण की भाषा नहीं हो सकती।
- राष्ट्रभाषा निर्माण का यह मुद्दा संविधान सभा के सदस्यों में तनाव का कारण बन गया और आगामी 3 वर्षों तक सदस्यों में इस विषय पर वाद-विवाद रहा। अंत में हिंदी समर्थकों एवं हिंदी विरोधियों के बीच हुए गतिरोध को दूर करने के लिए एक फार्मूला निकाला गया और देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी को भारत की राजकीय भाषा का दर्जा दिया जाए और हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ाया जाए।
- फार्मूले के अनुसार यह सुनिश्चित किया गया कि आने वाले 15 वर्षों तक अंग्रेजी को ही सरकारी कामकाज की भाषा बनाए रखा जाएगा। हर प्रांत को अपनी सरकारी कामकाज के लिए क्षेत्रीय भाषा के चुनाव का अधिकार रहेगा। संविधान सभा की भाषा समिति ने संविधान सभा के सभी सदस्यों को संतुष्ट करने हेतु तथा हिंदी विरोधियों को भी संतुष्ट करने हेतु हिंदी को राष्ट्रभाषा के जगह पर राजभाषा घोषित किया।
इस तरह भारत की कोई एक राष्ट्रभाषा नहीं बन सकी, हिंदी को भारत की राजभाषा बना दिया गया।
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