Asatya ki awaz mein Satya bahut Samay Tak chipa nahi reh sakta iska kya tatparya hai
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सत्य (truth) के अलग-अलग सन्दर्भों में एवं अलग-अलग सिद्धान्तों में सर्वथा भिन्न-भिन्न अर्थ हैं।
कोई एक घटना जितनी ज़्यादा जटिल ( complicated ) होती है, निरपेक्ष सत्य की, यानी उसके बारे में पूर्ण ज्ञान की, प्राप्ति उतनी ही कठिन होती है। किंतु इसके बावजूद निरपेक्ष सत्य ( absolute truth ) होता है और उसे मानव ज्ञान की वांछित सीमा और लक्ष्य के रूप में समझना चाहिए। प्रत्येक सापेक्ष सत्य ( relative truth ) हमें उस लक्ष्य के निकटतर लानेवाला एक क़दम है।
पूछा जा सकता है कि इन या उन वस्तुओं के बारे में पूर्ण और सर्वांगीण ( exhaustive ) जानकारी पा लेने के बाद क्या यह प्रक्रिया ख़त्म हो सकती है? यदि हम यह याद रखें कि भौतिक विश्व की बात तो दूर, उसके अलग-अलग खण्ड तक असंख्य गुणों, संबंधों और संपर्कों की समग्रता ( totality ) हैं, तो स्पष्ट हो जायेगा कि किसी भी परिघटना ( phenomena ) का पूर्ण, अंतिम और सर्वांगीण ज्ञान नहीं पाया जा सकता है। यह इसलिए भी संभव नहीं है कि परिवेशी परिघटनाएं स्वयं भी बढ़ती और बदलती रहती हैं और इस प्रक्रिया में उनमें नये गुण, नयी विशेषताएं और नये संबंध प्रकट होते रहते हैं। हम जीव अवयवियों को लें, जो अन्योन्यक्रिया ( mutual interaction ) करनेवाली अरबों कोशिकाओं से बने होते हैं, या आर्थिक प्रणालियों को , जिनकी परिधि में हज़ारों उद्यम, करोड़ों कामगार, तरह-तरह के माल बनानेवाले लाखों तरह के यंत्र और उपकरण आते हैं, वे सब इतने जटिल ( complex ) हैं कि ऐसी किसी भी परिघटना या वस्तु के बारे में पूर्ण और निःशेष ( thorough ) ज्ञान प्राप्त करना सर्वथा असंभव है।
कोई एक घटना जितनी ज़्यादा जटिल ( complicated ) होती है, निरपेक्ष सत्य की, यानी उसके बारे में पूर्ण ज्ञान की, प्राप्ति उतनी ही कठिन होती है। किंतु इसके बावजूद निरपेक्ष सत्य ( absolute truth ) होता है और उसे मानव ज्ञान की वांछित सीमा और लक्ष्य के रूप में समझना चाहिए। प्रत्येक सापेक्ष सत्य ( relative truth ) हमें उस लक्ष्य के निकटतर लानेवाला एक क़दम है।
पूछा जा सकता है कि इन या उन वस्तुओं के बारे में पूर्ण और सर्वांगीण ( exhaustive ) जानकारी पा लेने के बाद क्या यह प्रक्रिया ख़त्म हो सकती है? यदि हम यह याद रखें कि भौतिक विश्व की बात तो दूर, उसके अलग-अलग खण्ड तक असंख्य गुणों, संबंधों और संपर्कों की समग्रता ( totality ) हैं, तो स्पष्ट हो जायेगा कि किसी भी परिघटना ( phenomena ) का पूर्ण, अंतिम और सर्वांगीण ज्ञान नहीं पाया जा सकता है। यह इसलिए भी संभव नहीं है कि परिवेशी परिघटनाएं स्वयं भी बढ़ती और बदलती रहती हैं और इस प्रक्रिया में उनमें नये गुण, नयी विशेषताएं और नये संबंध प्रकट होते रहते हैं। हम जीव अवयवियों को लें, जो अन्योन्यक्रिया ( mutual interaction ) करनेवाली अरबों कोशिकाओं से बने होते हैं, या आर्थिक प्रणालियों को , जिनकी परिधि में हज़ारों उद्यम, करोड़ों कामगार, तरह-तरह के माल बनानेवाले लाखों तरह के यंत्र और उपकरण आते हैं, वे सब इतने जटिल ( complex ) हैं कि ऐसी किसी भी परिघटना या वस्तु के बारे में पूर्ण और निःशेष ( thorough ) ज्ञान प्राप्त करना सर्वथा असंभव है।
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jab hm jhoot bolte he tab vo jhoot jyada samay tak chip nahi sakta aur vo kabhi na kabhi pakra ja sakta he
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