अशोक के ‘धम्म’ का सार लिखिए।
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अशोक के ‘धम्म’ का सार अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद मनुष्य की नैतिक उन्नति के लिए अनेक आदर्शों का प्रतिपादन किया था जिन्हें ‘धम्म’ कहा जाता है। अशोक के धम्म की परिभाषा अशोक के दूसरे व सातवें स्तंभ लेख में मिलती है। इस परिभाषा के अनुसार पापकर्मों से निवृत्ति. विश्व कल्याण करना, दया, दान, सत्य एवं शुद्ध कर्म ही धम्म हैं। साधु स्वभाव का होना सदैव कल्याणकारी कार्य करना, पाप रहित जीवन व्यतीत करना, अपने व्यवहार में सदैव मिठास लाना, दूसरों के प्रति दया भाव रखना, दान शील प्रवृत्ति को अपनाना, सुचिता रखना, अहिंसा का पालन करना और प्राणियों का वध न करना, माता-पिता तथा अन्य बड़ों की सदैव आज्ञा का पालन करना, अपने गुरुजनों के प्रति आदर भाव रखना, मित्रों-परिचितों, संबंधियों, ब्राह्मणों आदि के प्रति सदैव सम्मान जनक व्यवहार रखना आदि अशोक द्वारा प्रतिपादित धम्म के आवश्यक नियम है।