अशोक ने किन लिपियों में अभिलेख लिखवाये?
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Explanation:
मौर्य राजवंश के सम्राट अशोक द्वारा प्रवर्तित कुल ३३ अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिन्हें अशोक ने स्तंभों, चट्टानों और गुफाओं की दीवारों में अपने २६९ ईसापूर्व से २३१ ईसापूर्व चलने वाले शासनकाल में खुदवाए। ये आधुनिक बंगलादेश, भारत, अफ़्ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल में जगह-जगह पर मिलते हैं और बौद्ध धर्म के अस्तित्व के सबसे प्राचीन प्रमाणों में से हैं।[1]
इन शिलालेखों के अनुसार अशोक के बौद्ध धर्म फैलाने के प्रयास भूमध्य सागर के क्षेत्र तक सक्रिय थे और सम्राट मिस्र और यूनान तक की राजनैतिक परिस्थितियों से भलीभाँति परिचित थे। इनमें बौद्ध धर्म की बारीकियों पर ज़ोर कम और मनुष्यों को आदर्श जीवन जीने की सीखें अधिक मिलती हैं। पूर्वी क्षेत्रों में यह आदेश प्राचीन मगधी भाषा में ब्राह्मी लिपि के प्रयोग से लिखे गए थे। पश्चिमी क्षेत्रों के शिलालेखों में खरोष्ठी लिपि का प्रयोग किया गया। एक शिलालेख में यूनानी भाषा प्रयोग की गई है, जबकि एक अन्य में यूनानी और अरामाई भाषा में द्विभाषीय आदेश दर्ज है। इन शिलालेखों में सम्राट अपने आप को "प्रियदर्शी" (प्राकृत में "पियदस्सी") और देवानाम्प्रिय (यानि देवों को प्रिय, प्राकृत में "देवानम्पिय") की उपाधि से बुलाते हैं।
अशोक ने ब्राह्मी, खरोष्ठी, प्राकृत, अर्क ग्रीक और अरामी में अभिलेख लिखवाये |
Explanation:
सम्राट अशोक के शासन काल के दौरान अशोक के अभिलेख कुल 33 शिलालेखों, स्तंभों, शिलाखंडों और गुफाओं की दीवारों पर लिखे गए हैं, जो भारत, पाकिस्तान और नेपाल को कवर करने वाले पूरे भारतीय उप-महाद्वीप में फैले हुए हैं। मौर्य साम्राज्य के पूर्वी भागों में पाए गए शिलालेखों को मगधी भाषा में ब्राह्मी लिपि का उपयोग करते हुए लिखा गया है। जबकि साम्राज्य के पश्चिमी हिस्सों में, लिपि का उपयोग खरोष्ठी, प्राकृत में लिखा गया है। विविधता में जोड़ने के लिए, एडिट 13 में एक अर्क ग्रीक और अरामी में लिखा गया है।