assay on types of dustbin in hindi
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शहरों में आज दुनिया की करीब आधी आबादी बसती है । भविष्य में भी शहरों की संख्या तथा वहां बसती आबादी में वृद्धि होती जायेगी, ऐसा कहना गलत नहीं होगा । शहरी जिंदगी आज की जरूरत है, मजबूरी है और दिन-प्रतिदिन बढती हुई आबादी की नियति । इस दिशा को बदलना संभव नहीं है, तो क्या हम इस अभिशाप को वरदान में या आंशिक वरदान में या कम-से-कम सहने लायक, जीने लायक, परिवेश में बदल सकते हैं । इसका उत्तर यदि हम ‘नहीं’ देते हैं, तो हमें इसका उत्तर ‘हां’ में ही देना होगा और शहरों में अच्छे जीवन के तरीके निकालने होंगे । यदि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आम शहरी को स्वच्छ, स्वास्थ्यपूर्ण सुविधायुक्त अच्छे पर्यावरण में जीने का अधिकार है, तो हमें इसके रास्ते भी खोजने होंगे । इसमें विलंब करना घातक होगा और हम अधिकाधिक शहरों को नरक में परिवर्तित करते रहेंगे । शहरों में कचरा बढता जा रहा है, पर इसके निस्तारण की सुविधाएं नहीं बढ रही हैं । स्वायत्तशासी संस्थाएं और उनमें बैठे लोग इसकी ज्वलंत जरूरतों के प्रति आंखें मूंदे बैठे हैं, जिसके भयानक परिणाम हो सकते हैं । नागरिक सुविधाओं की प्राप्ति के लिए केवल सरकार या अर्द्धसरकारी संगठनों, प्राधिकरणों, निगमों, नगर परिषदों आदि पर निर्भर रहना गलत है और उनकी अल्प संवेदनशीलता को और कम करना है । इसके लिए नागरिकों को न केवल सतत जागरूक रहना होगा वरन् अपने अधिकारों के लिए एक लंबी लड़ाई के लिए भी संकल्प लेना होगा । यह लड़ाई भी अनेक स्तरों पर होगी । तरह-तरह के अनेक संगठनों से निरंतर संपर्क बनाये रखना और उनका सहयोग प्राप्त करना इस लड़ाई का एक मुख्य भाग होगा । हर नागरिक को अपने कर्त्तव्यों के प्रति उतना ही जागरूक और जुझारू बनना पडेगा, जितना सजग और सक्रिय वह अपने अधिकारों के प्रति होता है । समस्याओं को सुलझाने की यही कुंजी है । हर नागरिक को नगर में अपनी छवि देखनी होगी, उसके प्रति गहरा लगाव और जुड़ाव पैदा करना होगा तभी हमारे शहर चमकीले और मानवीय बन सकते हैं, रह सकते हैं । हर शहर को अपना चरित्र बनाना चाहिए, उसकी विशेषताएं खोजनी और विकसित करनी चाहिए । हर शहर को अपना परंपरागत चरित्र और परंपरागत गौरव कायम रखना चाहिए और विकास के नाम पर शहर की आत्मा को नष्ट होने से बचाना चाहिए । इन सब पर ध्यान देने की अविलम्ब आवश्यकता है ।