At nahi rahi hh कविता me kon sa alankar h
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Answer:
Manaveekaran Alankar
Explanation:
अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।
अर्थ
उपरोक्त पंक्तियों में कवि ने फागुन माह में आने वाली वसंत ऋतु का वर्णन बहुत ही खूबसूरत ढंग से किया है। कवि कहते हैं कि फागुन की आभा इतनी अधिक है कि वह प्रकृति में समा नहीं पा रही है।
2 .
कहीं साँस लेते हो ,
घर-घर भर देते हो ,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो ,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है ।
अर्थ
फागुन माह में ऐसा लगता हैं मानो प्रकृति एक बार फिर दुल्हन की तरह सज धज कर तैयार हो गयी हैं। क्योंकि वसंत ऋतु के आगमन से सभी पेड़ पौधे नई-नई कोपलों (नई कोमल पत्तियों ) व रंग-बिरंगे फूलों से लद जाते हैं। और जब भी हवा चलती हैं तो सारा वातावरण उन फूलों की भीनी खुशबू से महक उठता हैं। उस समय ऐसा लगता हैं मानो फागुन ख़ुद सांस ले रहा हो।और सारे वातावरण को महका रहा हो।
उपरोक्त पंक्तियों में कवि ने उसी समय का वर्णन किया हैं। आगे कवि कहते हैं कि कभी ऐसा एहसास होता है जैसे तुम (फागुन माह ) आसमान में उड़ने के लिए अपने पंख फड़फड़ा रहे हो। कवि बसंत ऋतु की उस सुंदरता पर मोहित हैं। इसीलिए वो कहते हैं कि मैं अपनी आँखें हटाना तो चाहता है लेकिन मेरी आँखें हट नहीं रही हैं। यहाँ फागुन माह का मानवीकरण किया गया हैं।
3 .
पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी , कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में
मंद गंध पुष्प माल,
पाट-पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है।
अर्थ
बसंत ऋतु में सभी पेड़-पौधों में नये-नये-कोमल पत्ते निकल आते हैं और डाली – डाली रंग बिरंगी फूलों से लद जाती हैं। कवि उस समय की कल्पना करते हुए कहते हैं कि ऐसा लग रहा हैं मानो प्रकृति ने अपने गले में रंग बिरंगी भीनी खुशबू देने वाली सुंदर सी माला पहन रखी हो। कवि के अनुसार प्रकृति के कण कण में इतनी सुंदरता बिखरी पड़ी है कि अब वह धरा में समा नहीं पा रही है।यहाँ भी मानवीकरण किया गया हैं।