अट्टालिका नहीं है रे
आतंक - भवन
सदा पंक पर ही होता
जल - विप्लव - प्लावन
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Kya Bhai kuch bhi
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pagal
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कवि शोषक वर्ग पर व्यंग करते हुए कहता है कि इनके ऊँचे-ऊँचे महल न होकर आतंक के भवन है |
कवि कहते है कि पूँजीपतियों के ऊँचे-ऊँचे भवन मात्र भवन नहीं हैं अपितु ये गरीबों को आतंकित करने वाले भवन हैं। जो इन लोगों ने यह घर गरीबों की कमाई से बनाए है| यह बड़े लोग अपने घरों को दिखा कर छोटे लोगों को आतंकित करते है|
इसमें रहनेवाले लोग महान नहीं हैं। ये तो भयग्रस्त हैं। जल की विनाशलीला तो सदा पंक को ही डुबोती है, कीचड़ को कोई फ़र्क नहीं पड़ता। उसी प्रकार क्रांति की ज्वाला में धनी लोग ही जलते है, गरीबों को कुछ खोने का डर ही नहीं।
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