अतिथि सदैव देवता नहीं होता, वह मानव और थोड़े अंशों में राक्षस भी हो सकता है। ( in short answer)
Answers
एक कहावत है, “अतिथि देवो भव”। इसका मतलब होता है कि अतिथि देवता के समान होता है। लेकिन जब लेखक के अतिथि ने तीसरे दिन कपड़े धुलवाने के बहाने यह इशारा कर दिया कि वह अभी और दिन रुकेगा तो लेखक की समझ में आया कि अतिथि हमेशा देवता नहीं होता। लेखक को लगने लगा कि अतिथि एक मानव होता है जिसमें राक्षस की प्रवृत्ति भी दिखाई देती है। इसी राक्षसी प्रवृत्ति के कारण अतिथि लंबे समय तक टिक जाता है और अलग-अलग तरीकों से मेजबान को दुखी करता रहता है।
अतिथि सदैव देवता नहीं होता, वह मानव और थोड़े अंशों में राक्षस भी हो सकता है।
यह सत्य है हमारे शास्त्रों में अतिथि को देवता , भगवान माना गया है | जब भी अतिथि घर आए हमें उनका तय दिल से स्वागत करना चाहिए |
व्याख्या :
अतिथि सदैव देवता नहीं होता, वह मानव और थोड़े अंशों में राक्षस भी हो सकता है। यह पंक्ति भी सत्य है , यदि अतिथि , अतिथि की तरह न रह कर घरवालों को तंग करे और उनके घर बसेरा बना कर रहने लग जाए तो वह एक राक्षस की तरह लगने लग जाते है | वह रोज़-रोज़ तरह-तरह की डिमांड करने लगे जो कि घरवाले पूरी न कर सके , इस तरह के अतिथि को हम देवता नहीं कह सकते है | इस तरह के अतिथि , एक बोझ बन जाते है |