अधिकार का रक्षक एकांकी का शीर्षक
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‘उपेंद्र नाथ अश्क’ द्वारा रचित अधिकार का रक्षक एकांकी का मुख्य उद्देश्य ऐसे अवसरवादी नेताओं के चरित्र को उजागर करना हो जो भोली-भाली जनता को मूर्ख बनाकर और झूठे वादे कर चुनाव जीतते हैं। इस एकंकी मे ऐसे अवसरवादी नेता का चित्रण किया गया है। जिसकी कथनी और करनी में बेहद भारी अंतर होता है। ऐसे नेता लोग भोली भाली जनता को झूठे वादों का धोखा देकर अपना उल्लू सीधा करने में लगे रहते हैं और जब चुनाव जीत जाते हैं तो वह अपने वादों से पलट जाते हैं।
चुनाव से पहले वह बड़े-बड़े वादे ऐसे करते हैं। जैसे मजदूर वर्ग, कमजोर वर्ग, गरीबों आदि सभी के अधिकारों के रक्षक वे ही हैं। लेकिन जब वह चुनाव जीत जाते हैं तो अपने बातों से पलट कर केवल अपना स्वार्थ पूरा करने में ही लगे रहते हैं।
‘अधिकार का रक्षक’ यह एकांकी के आज के वर्तमान स्वार्थ से भरी हुई राजनीति और नेताओं के दौरे चरित्र का चित्रण प्रस्तुत करता है। जो स्वयं तो जनता के अधिकार के रक्षक होने का दावा करते हैं। लेकिन वास्तव में वह जनता के अधिकारों की रक्षा नहीं करते बल्कि उनके अधिकारों का शोषण करते हैं।