अधोलिखितेषु रेखांकित पदेषु विभक्ति तत् कारणं च लिखत
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संस्कृत में व्याकरण की परम्परा बहुत प्राचीन है। संस्कृत भाषा को शुद्ध रूप में जानने के लिए व्याकरण शास्त्र का अध्ययन किया जाता है। अपनी इस विशेषता के कारण ही यह वेद का सर्वप्रमुख अंग माना जाता है ('वेदांग'
यस्य षष्ठी चतुर्थी च विहस्य च विहाय च।
यस्याहं च द्वितीया स्याद् द्वितीया स्यामहं कथम् ॥
- जिसके लिए "विहस्य" छठी विभक्ति का है और "विहाय" चौथी विभक्ति का है ; "अहम् और कथम्"(शब्द) द्वितीया विभक्ति हो सकता है। मैं ऐसे व्यक्ति की पत्नी (द्वितीया) कैसे हो सकती हूँ?
(ध्यान दें कि किसी पद के अन्त में 'स्य' लगने मात्र से वह षष्टी विभक्ति का नहीं हो जाता, और न ही 'आय' लगने से चतुर्थी विभक्ति का । विहस्य और विहाय ये दोनों अव्यय हैं, इनके रूप नहीं चलते। इसी तरह 'अहम्' और 'कथम्' में अन्त में 'म्' होने से वे द्वितीया विभक्ति के नहीं हो गये। अहम् यद्यपि म्-में अन्त होता है फिर भी वह प्रथमपुरुष-एकवचन का रूप है। इस सामान्य बात को भी जो नहीं समझता है, उसकी पत्नी कैसे बन सकती हूँ? अल्प
(क) चिकीर्षुः ............... ..............
उत्तरम्-> चिकीर्षुः = कृ धातु = (सन्+उ)प्रत्यय = (पुलिंग प्रथमा – एकवचन)
(ख) उपदेष्टव्यम् ............... ..............
उत्तरम्-> उपदेष्टव्यम् = उप+दिश् धातु = तव्यत् प्रत्यय = (नपुं. प्रथमा एकवचन)
(ग) ईक्षते ............... ..............
उत्तरम्-> ईक्षते = ईक्ष् धातु = (लट् लकार प्रथम पुरुष एकवचन, आत्मनेपदे)
(घ) बुध्यते ............... ..............
उत्तरम्-> बुध्यते = बुध् धातु = (लट् लकार प्रथम पुरुष एकवचन, आत्मनेपदे)
(ङ) निन्द्यसे ............... ..............
उत्तरम्-> निन्द्यसे = निन्द् धातु = थास् प्रत्यय = (लट् लकार मध्यम पुरुष एकवचन, आत्मनेपदे)
(च) उपशशाम ............... ..............
उत्तरम्-> उपशशाम = उप+शम् धातु = णल् प्रत्यय = (लिट् लकार मध्यम पुरुष एकवचन, आत्मनेपदे)