अधोलिखितपदेषु सन्धिं सन्धिच्छेद वा कुरुत-
(क) स्वाधीनतार्यभवि
(ख) दधाति + उषसि
(ग) ततिस्तरूणाम्
(घ) निर्जनवने + अथ
(ङ) सुशुका विलसन्ति।
(च) तदनु
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अधोलिखितपदेषु सन्धिं सन्धिच्छेद वा कुरुत-
(क) स्वाधीनतार्यभुवि:
उत्तरम्-> स्वाधीनता+आर्यभुवि:
(ख) दधाति + उषसि
उत्तरम्-> दधात्युषसि
(ग) ततिस्तरूणाम्
उत्तरम्-> तति:+तरूणाम्
(घ) निर्जनवने + अथ
उत्तरम्->निर्जनवनयथ
(ङ) सुशुका विलसन्ति।
उत्तरम्-> सुशुका:+विलसन्ति
(च) तदनु
उत्तरम्-> तद्+अनु
*सूत्र* - *अक: सवर्णे दीर्घ:* अर्थात् अक् प्रत्याहार के बाद उसका सवर्ण आये तो दोनो मिलकर दीर्घ बन जाते हैं। ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ के बाद यदि ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ आ जाएँ तो दोनों मिलकर दीर्घ आ, ई और ऊ हो जाते हैं।
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