अधोलिखितस्य नाट्यांशस्य सप्रसंगं संस्कृतव्याख्या करोतु तापसी: सर्वदमन्, शकुन्तलावण्यं प्रेक्षस्व।
बाल: (सदृष्टिक्षेपम्) कुत्र वा मम माता?
उभे: नामसादृश्येन वंचितो मातृवत्सलः।
द्वितीया: वत्स, अस्य मृत्तिकामयूरस्य रम्यत्वं पश्येति भणितोऽसि।
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अधोलिखितस्य नाट्यांशस्य सप्रसंगं संस्कृतव्याख्या करोतु
प्रसंग-> प्रस्तुत नाट्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्य पुस्तक ........ के अंतर्गत पाठ ....... से लिया गया है| प्रस्तुत पंक्तियों में शान्कुतला के बेटे और तापसी की आपसी वार्तालाप का वर्णन है|
तापसी: सर्वदमन्, शकुन्तलावण्यं प्रेक्षस्व।
तापसी- सर्वदमन, शन्कुतला
बाल: (सदृष्टिक्षेपम्) कुत्र वा मम माता?
बाल – (देखते हुए) मेरी माता कहाँ है?
उभे: नामसादृश्येन वंचितो मातृवत्सलः।
दोनों- माता का प्यारा नाम एक जैसा होने से ठगा गया|
द्वितीया: वत्स, अस्य मृत्तिकामयूरस्य रम्यत्वं पश्येति भणितोऽसि।
दूसरी – पुत्र, इस मिट्टी के मोर की सुन्दरता को तो देखो ऐसा लगता है कि बोल पड़ेगा|
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