English, asked by adyasha9390, 5 months ago

Atmanirvartha essay for class 7 essay​

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Answered by raghavvn2008
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Atmanirvartha essay

मनुष्य स्वभावतः सुख की चाह तो रखता हैं लेकिन इसके लिए वह अपने कार्यों एवं वस्तुओं के लिए दूसरों पर निर्भर होने लगता हैं. आत्मनिर्भरता केवल व्यक्ति के लिए ही नहीं, राष्ट्र के लिए भी आवश्यक हैं. स्वतंत्रता के बाद कई वर्षों तक भारत खाद्यान्न के लिए दूसरे राष्ट्रों पर निर्भर था.

इस कारण इसे कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था.साठ के दशक में हुई हरित क्रांति के बाद भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बना. यह भारत की आत्मनिर्भरता का ही नतीजा रहा कि देश की जनता खुशहाली में स्वाभाविक रूप से वृद्धि हुई.

आत्मनिर्भरता से ही मनुष्य प्रगति कर सकता हैं. आत्मनिर्भर व्यक्ति ही अपने एवं अपने परिवार का भरण पोषण करने में सक्षम होता हैं. बैसाखी के सहारे चलने वाले व्यक्ति की यदि बैसाखी छिन ली जाए तो वह चलने में असमर्थ हो जाता हैं. ठीक यही स्थिति दूसरों के सहारे जीने वाले लोगों की भी होती हैं.

मनुष्य यदि प्रकृति पर ही निर्भर रहता, तो उसने जीवन के हर क्षेत्र में जो प्रगति हासिल की हैं, वह उसे कभी प्राप्त नहीं कर पाता. मनुष्य की आत्मनिर्भरता ने ही उसे पशुओं से अलग किया हैं. हालांकि पशु स्वाभाविक रूप से अधिक आत्मनिर्भर होते हैं. किन्तु आत्मनिर्भरता प्राप्त करने की चाह मनुष्य में अधिक होती हैं.

वह अपने जीवन में सुख की प्राप्ति के लिए हर प्रकार के साधन जुटाना चाहता हैं, इसके लिए उसे स्वयं परिश्रम करने की आवश्यकता पड़ती हैं. आत्मनिर्भरता की उसकी यही चाह उसकी प्रगति का कारण बनती हैं. गृहस्थ जीवन से पहले व्यक्ति का आत्मनिर्भर होना आवश्यक हैं. दूसरों पर निर्भर लोगों के लिए गृहस्थ जीवन दुखों का पहाड़ साबित होता हैं. इसलिए गृहस्थ जीवन की शुरुआत से पहले लोग रोजगार की तलाश में जुट जाते हैं.

आत्मनिर्भरता आत्मविश्वास को बढ़ाने में सहायक होती हैं. जिसके कारण सफलता की राह आसान हो जाती हैं. आत्मनिर्भर व्यक्ति अपने समय का सदुपयोग भली भांति कर पाने में सक्षम होता हैं. वह समाज में प्रतिष्ठा का पात्र बनता हैं. यदि कोई व्यक्ति महान लेखक बनने का सपना देखता हैं तो उसे स्वयं लिखना पड़ेगा, दूसरों पर निर्भर रहकर वह लेखक कदापि नहीं बन सकता हैं.

एक वैज्ञानिक स्वयं अपने शोध द्वारा किसी निष्कर्ष पर पहुचता है. दूसरों के शोध के आधार पर वह अपने लक्ष्य तक नहीं पहुच सकता. खिलाड़ियों को जीत का स्वाद चखने के लिए स्वयं खेलना पड़ता हैं. यदि छात्र अपने जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहता हैं तो उसे स्वयं परीक्षा में शामिल होना पड़ेगा व परीक्षा में मनोवांछित सफलता प्राप्त करने के लिए उसे स्वयं अध्ययन करना होगा. इसी प्रकार जीवन के हर क्षेत्र में उसे ही सफलता मिलती हैं, जो आत्मनिर्भर होता हैं.

भारत में स्त्रियाँ प्रायः अपने परिजनों पर निर्भर रहा करती हैं. उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार की योजनाओं की शुरुआत की गई हैं. महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना में भी इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए इस बात को सुनिश्चित किया गया हैं कि इस योजना का कम से कम 33 प्रतिशत लाभ महिलाओं को मिले.

इसके अतिरिक्त आंगनबाड़ी योजना के अंतर्गत भी उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए सिलाई, कढ़ाई एवं बुनाई जैसे विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रमों की शुरुआत की गई. युवाओं की बेरोजगारी दूर कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए देश में व्यावसायिक शिक्षा पर जोर दिया जा रहा हैं.

जब तक भारत परतंत्र था, यह अपने विकास के लिए अंग्रेजों पर निर्भर था. लोग चाह कर भी अपना एव अपने देश का भला करने में असमर्थ थे. आजादी प्राप्त करने के बाद भारत आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हुआ एवं आज स्थिति यह हैं कि यह धीरे धीरे दुनियां के विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में आ खड़ा हुआ हैं. महापुरुषों के जीवन से भी हमें आत्मनिर्भरता की शिक्षा मिलती हैं. महात्मा गांधी अपना सामान्य कार्य खुद करते थे.

दूसरे पर निर्भरता हमें दूसरों का अनुसरण करने के लिए बाध्य करती हैं. दूसरे पर निर्भर रहते हुए उसकी मर्जी के अनुरूप जीने को बाध्य होना पड़ता हैं. हमारी स्वाभाविक सृजनशीलता एवं सोचने की शक्ति नष्ट हो जाती हैं. हमारा आत्मविश्वास खत्म हो जाता हैं. हमें लगने लगता हैं कि हम स्वयं कुछ नहीं कर सकते. ऐसी भावना के कारण हमारी उन्नति बाधित होती हैं.

स्वयं परिश्रम कर अर्जित की हुई सम्पति के भोग का आनन्द अलग ही होता हैं. दूसरों की कृपा पर जीने वाला व्यक्ति इस आनन्द से सदा वंचित रहता हैं. यदि हम किसी का सहारा लेना चाहते हैं तो

हमें अपने अंदर छिपी योग्यता एवं मनोबल और अपने आत्मविश्वास का सहारा लेना चाहिए, क्योकि उससे व्यक्ति आत्म निर्भर बनता हैं और आत्मनिर्भर व्यक्ति के लिए सफलता के दरवाजे हमेशा खुले होते हैं.

Answered by sanjanasinghgh
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Answer:

मनुष्य को जीवन में दूसरों पर भरोसा न कर आत्म निर्भर और आत्म विश्वासी होना चाहिए । दूसरे शब्दों में आत्म-सहायता ही उसके जीवन का मूल सिद्धांत, मूल आदर्श एवं उसके उद्देश्य का मूल-तंत्र होना चाहिए । असंयत स्वभाव तथा मनुष्य का परिस्थितियों से घिरा होना, पूर्णरूपेण आत्मविश्वास के मार्ग को अवरूद्ध सा करता है ।

वह समाज में रहता है जहां पारस्परिक सहायता और सहयोग का प्रचलन है । वह एक हाथ से देता तथा दूसरे हाथ से लेता है । यह कथन एक सीमा तक उचित प्रतीत होता है । ऐसा गलत प्रमाणित तब होता है जब बदले में दिया कुछ नही जाता सिर्फ लिया भर जाता है और जब अधिकारों का उपभोग विश्व में बिना कृतज्ञता का निर्वाह किए, भिक्षावृत्ति तथा चोरी और लूट-खसोट में हो, लेकिन विनिमय न हो ।

फिर भी पूर्ण आत्म-निर्भरता असंभव सी है । जीवन में ऐसे सोपान आते हैं, जब आत्म विश्वास को जागृत किया जा सकता है । स्वभावतया हम दूसरों पर आर्थिक रूप से निर्भर होते हैं । हम जरूरत से ज्यादा दूसरों की सहायता, सहानुभूति, हमदर्दी, नेकी पर विश्वास करते हैं, लेकिन यह आदत हानिकारक है । इससे हमारी शक्ति और आत्म उद्योगी भावना का ह्रास होता है । यह आदत हममें निज मदद हीनता की भावना भर देती है ।

यह हमारे नैतिक स्वभाव पर उसी प्रकार कुठाराघात करती है, जैसे किसी नव शिशु को गिरने के डर से चलने से मना करने पर कुछ समय पश्चात् अपंग हो जाता है । यदि इसी प्रकार हम दूसरों पर निर्भर न रहें तो नैतिक रूप से हम अपंग व विकृत हो जाते हैं ।

इसके अलावा दूसरों से काफी अपेक्षा रखना एक तरह से खुद को उपहास, दयनीय स्थिति, तिरस्कार व घृणा का पात्र बना लेने के बराबर है । इस स्थिति में लोग आश्रित और परजीवी बन जाते हैं । आत्म-शक्ति से परिपूर्ण व्यक्तियों के मध्य हमारी खुद की स्थिति दयनीय हो जाती है ।

विभिन्न क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने के लिए हमारा अन्त करण हमें उत्तेजित करता है । अन्त में हम इस मानव जाति से घृणा व विरोध करने लगते हैं । ईर्ष्या हमारे जीवन में जहर भर देती हैं । इससे ज्यादा दयनीय स्थिति और कोई नही ।

इससे बिल्कुल विपरीत स्थिति आत्म-विश्वासी व्यक्ति की है । वह वीर और संकल्पी होता है । वह बाहरी सहायता पर विश्वास नही करता, बकवास में विश्वास नही रखता और बाधाओं, मुसीबतों से संघर्ष करता है तथा हर पग पर नए अनुभव प्राप्त करता है । वह चाहे सफल रहे या असफल उसे हमेशा दया, आदर और प्रशंसा का अभिप्राय माना जाता है ।

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