Hindi, asked by priti11rohraoyqt8t, 1 year ago

Autobiography of a farmer

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Answered by khushi220
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कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की धुरी है | देश की कुल श्रम-शक्ति का लगभग 51 प्रतिशत भाग कृषि एंव इससे संबंधित उद्योग-धंधों से अपनी आजीविका कमाता है | ब्रिटिश काल में भारतीय कृषक अंग्रेजों एवं जमींदारों के जुल्म से परेशान एंव बेहाल थे | स्वतन्त्रता के बाद उनकी स्थिति में काफी सुधार हुआ, किन्तु जिस तरह कृषकों के शहरों की ओर पलायन एवं उनकी आत्महत्या की खबरें सुनने को मिलती हैं, उससे यह स्पष्ट होता है कि उनकी स्थिति में आज भी अपेक्षित सुधार नहीं हो सका है | स्थिति इतनी विकट हो चुकी है कि कृषक अपने बच्चों को आज कृषक नहीं बनाना चाहता |

भारतीय कृषक बहुत कठोर जीवन जीता है | अधिकतर भारतीय कृषक निरंतर घटते भू-क्षेत्र के कारण गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं | दिन-रात खेतों में परिश्रम करने के बाद भी उन्हें तन ढकने के लिए समुचित कपड़ा नसीब नहीं होता | जाड़ा हो या गर्मी, धूप हो या बरसात उन्हें दिन-रात बस खेतों में ही परिश्रम करना पड़ता है | इसके बावजूद भी उन्हें फसलों से उचित आय नहीं हो पाती | बड़े-बड़े व्यापारी कृषकों से सस्ते मूल्य पर ख़रीदे गए खाद्यान्न, सब्जी एंव फलों को बाजारों में ऊँची ड्रोन पर बेच देते हैं | इस तरह कृषकों का श्रम लाभ किसी और को मिल जाता है और किसान अपनी किस्मत को कोसता है |

किसानों की ऐसी दयनीय स्थिति का एक कारण यह भी है कि भारतीय कृषि मानसून पर निर्भर है और मानसून की अनिश्चितता के कारण प्रायः कृषकों को कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है | समय पर सिंचाई नहीं होने के कारण भी उन्हें आशानुरुप फसल की प्राप्ति नहीं हो पाती | ऊपर से आवश्यक उपयोगी वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के कारण कृषकों की स्थिति और भी दयनीय हो गई है तथा उनके सामने दो वक्त की रोटी की समस्या खड़ी हो गई है | कृषि में श्रमिकों की आवश्यकता साल भर नहीं होती, इसलिए साल के लगभग तीन-चार महीने कृषकों को खाली बैठना पड़ता है | इस कारण भी कृषको के गांव से शहरों की ओर पलायन में वृद्धि हुई है |

देश के विकास में कृषकों के योगदान को देखते हुए, कृषकों और कृषि-क्षेत्र के लिए कार्य योजना का सुझाव देने हेतु डॉ. एम.एस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में ‘राष्ट्रीय कृषक आयोग’ का गठन किया गया था | इसने 2006 में अपनी चौथी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें कृषकों के लिए एक विस्तृत नीति के निर्धारण की संस्तुति की गई | इसमें कहा गया कि सरकार को सभी कृषिगत उपजों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करना चाहिए तथा यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि कृषकों को विशेषत: वर्षा आधारित कृषि वाले क्षेत्रों में न्यूनतम समर्थन मूल्य उचित समय पर प्राप्त हो सके |

राष्ट्रीय कृषक आयोग की संस्तुति पर भारत सरकार ने राष्ट्रीय कृषि नीति, 2007 की घोषणा की | इसमें कृषकों के कल्याण एवं कृषि के विकास के लिए कई बातों पर जोर दिया गया है | इसमें कही गई बातें इस प्रकार हैं- सभी कृषिगत उपजों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित किया जाए | मूल्यों में उतार-चढ़ाव से कृषकों की सुरक्षा हेतु मार्केट रिस्क स्टेबलाइजेशन फण्ड की स्थापना की जाए | सूखे एंव वर्षा संबंधी जोखिमों से बचाव हेतु एग्रीकल्चर रिस्क फण्ड स्थापित किया जाए | सभी राज्यों में राज्यस्तरीय किसान आयोग का गठन किया जाए | कृषकों के लिए बीमा योजना का विस्तार किया जाए | कृषि संबंधी मामलों में स्थानीय पंचायतों के अधिकारों में वृद्धि की जाए | राज्य सरकारों द्वारा कृषि हेतु अधिक संस्थानों का आवंटन किया जाए |

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