Hindi, asked by rehan37, 1 year ago

autobiography of a pen in hindi

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Answered by muskanvermabsp
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जब तक सृष्टि है, तब तक मैं रहूंगी । मेरे रूपों में हमेशा परिवर्तन होता रहेगा । मैंने अब तक अनेक कहानियां, कविताएं, उपन्यास, नाटक तथा विभिन्न प्रकार का साहित्य लिखा है, जो संसार की हजारों भाषाओं एवं लिपियों में मिलता है ।

समस्त वनों की लकड़ियों को लेखनी  का रूप दे दिया जाये या फिर समस्त धरती को कागज का रूप दिया जाये और समस्त नदी सागर एवं महासागरों को स्याही का रूप दे दिया जाये, तो ज्ञात होगा कि मैं सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर अब  तक लिखती रही हूं ।

उसकी गणना कहीं उससे अधिक है । मुझे इस बात का हमेशा गर्व रहेगा  की मानव ने अब तक जो भी लिखा है, वह मेरे ही अस्तित्व का प्रमण है । आदिकवि वाल्मीकि, कालिदास, चन्दर्न्स्प, तुलसीदास से लेकर प्रेमचन्द तक या फिर इससे उग भी मेरा ही उपयोग कर साहित्य रचा गया ।

मैं न होती, तो साहित्य नहीं होता । मानव की वाचिक अभिव्यक्ति को लिखित रूप मैंने ही प्रदान किया । ज्ञान-विज्ञान के संचित कोष  से मेरे ही द्वारा संरक्षित किया गया । एक पीढ़ी से दूसरी पीढी  के ज्ञान को हस्तान्तरित मेरे ही द्वारा किया गया ।

मैंने अपने ज्ञान से मानवता और मनुष्य की ही नहीं, समस्त जीव-जन्तुओं की रक्षा की है । सृष्टि का समूचा अस्तित्व मेरे ही लेखन का ऋणी रहेगा । इस रूप में सबका कल्याण ही करना चाहूंगी । यही मेरे जीवन की सार्थकता है ।

Answered by shreya1431
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जी हाँ! मैं एक काफिर हूँ. मेरा कोई भगवान नहीं है, कोई खुदा नहीं है. मैं तो सिर्फ उन ख़्वाबों और ख्यालों के सहारे जिंदा हूँ जो मुझे रोज़ नींद से जगाते हैं. कईओं की हाथों की मेहंदी और कईओं के आँखों का सूरमा हूँ मैं. चाँद से टपकी पिघली हुई रौशनी से सीली वो रात हूँ मैं. मैं ज्ञात हूँ और अज्ञात भी हूँ. मैं उस ख़त में लिखी वह धुंधली सी बात हूँ. मैं लफ्ज़ हूँ, मैं सदियों पुरानी हूँ लेकिन फिर भी सब्ज़ हूँ.

मैं वह हथियार हूँ जो खून नहीं बहाता, मैं वह हथियार हूँ जो शायद खून को बहने से बचा सके.

बोलो! है कोई मेरे जैसा?

मैं एक कलम हूँ.

इतिहास, वर्तमान और भविष्य का मूल.

लेखक मेरे प्रेमी हैं. ग़ालिब से लेकर प्लेटो, सब मेरी खूबसूरती के कायल रह चुके हैं. सदियों से सिरों को ऊपर उठाने और उनकी गर्दनों को मज़बूत बनाने का काम किया है मैनें. लोगों की आवाज़ को ताकत देकर सारे विश्व तक पहुंचाया है मैनें. मेरे कई रूप हैं. कभी गांधी की विनम्रता बनी हूँ तो कभी हिटलर की नफरत. कभी टैगोर की कविताएँ तो कभी मंटो की कहानियां!

कभी किसी की जेब में सजती हूँ तो कभी किसी के कान पर.

भगवान बनकर धर्म लिखे हैं मैंने. सियासतें उठाई और गिराई हैं.

कभी ख़त लिखे तो कभी कसीदे. लेकिन थकी नहीं. बस कर्म करती गई!

फेंकी गई हूँ, गली-कूचों से उठाई गयी हूँ!

इस दुनिया को बखूबी मेरी पहचान पता है. बस मेरे अरमान नहीं पता.

लोग कहते हैं कि आज की आधुनिक दुनिया में मेरी एहमियत काफी कम हो गयी है. लेकिन मेरा मानना कुछ अलग है. मेरी आज भी इज्ज़त की जाती है और मुझे पूरा भरोसा है कि इसी तरह मेरी इज्ज़त की जायेगी. मैं ज़्यादा कुछ नहीं मांगती, बस तुम्हारी मेज़ का एक कोना और थोड़ी सी इज्ज़त. और बस  ख्यालों को मरने मत दो, नहीं तो मेरे अस्तित्व का क्या फायदा?

कल फिर उठाई जाऊँगी मैं. कल फिर कुछ पन्नों को सजाऊँगी.
कल फिर मैं कलम कहलाऊँगी.

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