autobiography of bird in hindi
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✨पक्षी की आत्मकथा...!!
आज़ादी मनुष्य को अपनी आज़ादी बहुत प्यारी है। परन्तु हमें गुलाम बनाकर वह बहुत प्रसन्न होता है। यह कहाँ की इनसानियत है जो उसने मुझे बंदी बना रखा है।
मेरा जन्म आम के पेड़ पर हुआ। जब मैं अंडे से बाहर आया तब मेरे पंख नहीं थे। मेरे माता-पिता मुझे बहुत प्यार करे थे। अपनी चोंच से मेरे मुँह में दाना डालते थे। मैं चूं-चू करके अपने पँखों को फड़फड़ाने की कोशिश करता था। धीरे-धीरे में बड़ा हुआ। मेरे हरे-हरे पंख बड़े हुए। मैं फुदकता था, उड़ने की कोशिश करता तो मेरी माँ बहुत खुश होतीं और कहतीं ‘बेटा, अभी थोड़ा ठहरो। पंखों को बड़ा होने दो, फिर उड़ना। यह सारा खुला आसमान तुम्हारे खेलने और उड़ने के लिए ही तो है।”
कितनी अद्भुत थी मेरी दुनिया। प्रकृति का आनंद लेता, अपनी मर्जी से घूमता-फिरता, शाम होते ही अपने घोंसले में आकर विश्राम करता था।
पर हाय! कुछ ही दिन हुए एक दष्ट आया। उसने मुझे देखा, मैं तो उसे देखते ही डर गया। उसने मुझ पर जाल फेंका। मैंने बचने के लिए अपने पंख फड़फड़ाए किंतु उसने अपने निर्मम हाथों से मुझे पकड़ लिया। मैं सहायता के लिए चीखा-चिल्लाया। कछ पक्षियों ने मेरी आवाज़ सुनी, सहायता करने की कोशिश की किंतु विफल रहे। बहेलिए ने मुझे पकड़कर एक पिंजरे में बंद कर दिया और शहर लाकर बेच दिया। तब से मैं इस पिजरे में बंद हूँ। बँधकर रहना मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता है। घर के लोग मुझे दाना-पानी देते हैं, मुझसे बातें करते हैं। मेरा मालिक भला है, मुझे प्यार करता है। मुझसे बातें करता है। जब भी कोई घर में आता है, मुझे ‘मिट्ठू राम’ या ‘मियाँ मिट्टू’ कहकर बुलाता है। सुनते-सुनते मैं समझ गया हूँ कि मेरा नाम मिट्टू है।
अब मैं मिट्ठू हूँ, पर दुखी हैं। जब मैं खुले आकाश में उड़ते हुए पक्षियों को देखता हूँ, मेरे दिल पर छुरिया चलने लगती हैं, क्योंकि मैं स्वतंत्र नहीं हूँ। मैं पिंजरे में बंद हूँ। मैं आँखें फाड़-फाडकर ऊपर रखने आसमान को देखता हूँ। टें-टें करके चिल्लाता हैं और मन मसोसकर रह जाता हूँ , क्योंकि मैं परतंत्र हैं। कहते हैं कि देश आज़ाद हो गया, पर मैं कब आज़ाद हो पाऊँगा। कब मिलेगी मुझे आजादी की खुली हवा!
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