avismarniya essay on marathi
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अविस्मरनीय दिन | avismarniya din | unforgettable days
यूँ तो जीवन में कुछ न कुछ नवीन व विशिष्ट घटित होता रहता है पर कुछ मौकें या क्षण इतने अविस्मरनीय होते हैं जो हमे भीतर तक प्रफुल्लित कर देते है, एक नई प्रेरणा देते हैं और तमाम उम्र के लिए स्मृति पटल पर अंकित हो जाते हैं| ऐसा ही एक अवसर मेरे जीवन में भी आया| मुझे बचपन से ही क्रिकेट का जूनून हैं| पढ़ी में मैं सदा ओसत दर्जे का विद्यार्थी ही रहा| मेरे पिताजी को ये भांप लेने में समय न लगा और उन्होंने मेरा दाखिला एम आर एफ की क्रिकेट अकादमी में करवा दिया| अब तो नित्य ही नया सीखना और कठिन अभ्यास करना मेरी दिनचर्या बन गई थी| अपना किट लिए मैं सुबह-शाम जमकर पसीना बहाता | मेरे कोच ने मुझे बल्लेबाजी के लिए प्रेरित किया| कई गुर सिखाये| अंडर 14 टीम का चयन राज्य स्तर पर खेलने के लिए किया जा रहा था| मुझे दृढ विश्वास था कि मैं भी चुना जाऊंगा| मैं चुना गया| हमारी टीम फाइनल में पहुंची| मेरे माता- पिता की ख़ुशी का ठिकाना न था| फाइनल मैच की एक रात पहले हम तीनों रोमांच के मारे सो भी न पाए थे| अगर इस मैच में मेरा प्रदर्शन बेहतर रहेगा तो क्रिकेट ही मेरा लक्ष्य होगा, ऐसा हम तीनों का विचार था| अंततः हमारी टीम ने फाइनल जीता| मैंने शानदार प्रदर्शन करके सैंकड़ा लगाया था| अब धडकते दिल से मैं मैन ऑफ़ द मैच की घोषणा का इंतजार कर रहा था| यहाँ भी आशा थी कि मुझे ही मिलेगा| वही हुआ पर मैं भौचक्का तो जब रह गया जब मुझे ट्रोफी प्रदान करने वाली शख्सियत कोई और नहीं मेरे प्रेरणास्त्रोत और क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर थे| हृदय में इतना उत्साह और हर्ष था कि संभाले नहीं संभल रहा था| आँखे ख़ुशी से भर आई| अपने आदर्श से हाथ मिलाना, उनके साथ फोटो खिचवाना, उनके हस्ताक्षर वाला बल्ला और उनके द्वारा पीठ थपथपाकर शाबासी देना एक सपने के सच होने जैसा था| भावी में मैं भले ही कितना भी सफल हो जाऊ| अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलूँ पर ये दिन मेरे लिए आजीवन अविस्मरनीय रहेगा|