अयोपदत्त चित्र दृष्ट्वा मञ्जूषायाः सहायतया च संस्कृते पञ्च वाक्यानि लिखत-
मञ्जूषा
सूर्योदयस्य, पर्णकुटीरम्, नारिकेलवृक्षो, जलपोतम्, खगाः, गगने, तरन्ति, जले, मेघाः, रमणीयम्
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जवाहिर'), शेख निसार ('यूसुफ़ जुलेखा'), अलीशाह ('प्रेम चिंगारी') आदि सूफी कवियों ने अवधी को साहित्यिक गरिमा प्रदान की। इनमें सर्वप्रमुख जायसी थे। अवधी को रामभक्त कवियों ने अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया, विशेषकर तुलसीदास ने 'राम चरित मानस' की रचना बैसबाड़ी अवधी में कर अवधी भाषा को जिस साहित्यिक ऊँचाई पर पहुँचाया वह अतुलनीय है। मध्यकाल में साहित्यिक अवधी का चरमोत्कर्ष दो कवियों में मिलता है जायसी और तुलसीदास में।
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