Hindi, asked by Anonymous, 9 months ago

अयोध्या जी की सुन्दरता का वर्णन

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Answered by Anonymous
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प्राचीन नगर अयोध्या के अवशेष अब खंडहर के रूप में रह गए थे जिसमें कहीं कहीं कुछ अच्छे मंदिर भी थे। लेकिन 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट अर्थात उच्चतम न्यायालय के आदेश देने के पश्चात अब यहां एक नया भव्य राम मंदिर बनने वाला है।यह नया मंदिर बनने तक रामलला मूर्ति को जन्मस्थान से स्थानांतरित कर एक अस्थाई मंदिर में प्रतिष्ठापित किया है। वर्तमान अयोघ्या के प्राचीन मंदिरों में सीतारसोई तथा हनुमानगढ़ी मुख्य हैं। कुछ मंदिर 18वीं तथा 19वीं शताब्दी में बने जिनमें कनकभवन, नागेश्वरनाथ तथा दर्शनसिंह मंदिर दर्शनीय हैं। कुछ जैन मंदिर भी हैं। यहाँ पर वर्ष में तीन मेले लगते हैं - मार्च-अप्रैल, जुलाई-अगस्त तथा अक्टूबर-नंवबर के महीनों में। इन अवसरों पर यहाँ लाखों यात्री आते हैं।

अयोध्या, भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले का एक नगर और जिले का मुख्यालय है। सरयू नदी के तट पर बसा अयोध्या एक अति प्राचीन धार्मिक नगर है। मान्यता है कि इस नगर को मनु ने बसाया था और इसे 'अयोध्या' का नाम दिया जिसका अर्थ होता है अ-युध्य अथार्थ 'जहां कभी युद्ध नहीं होता। ' इसे 'कौशल देश' भी कहा जाता था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अयोध्या मे सूर्यवंशी/रघुवंशी राजाओं का राज हुआ करता था, जिसमे भगवान श्री राम ने अवतार लिया था। यहाँ पर सातवीं शाताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उसके अनुसार यहाँ 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे। यह सप्त पुरियों में से एक है-

Answered by sk181231
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Answer:

प्रातकाल सरऊ करि मज्जन।

बैठहिं सभाँ संग द्विज सज्जन॥

बेद पुरान बसिष्ट बखानहिं।

सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं॥1॥

प्रातःकाल सरयूजी में स्नान करके ब्राह्मणों और सज्जनों के साथ सभा में बैठते हैं। वशिष्ठजी वेद और पुराणों की कथाएँ वर्णन करते हैं और श्री रामजी सुनते हैं, यद्यपि वे सब जानते हैं॥1॥

अनुजन्ह संजुत भोजन करहीं।

देखि सकल जननीं सुख भरहीं॥

भरत सत्रुहन दोनउ भाई।

सहित पवनसुत उपबन जाई॥2॥

वे भाइयों को साथ लेकर भोजन करते हैं। उन्हें देखकर सभी माताएँ आनंद से भर जाती हैं। भरतजी और शत्रुघ्नजी दोनों भाई हनुमान्‌जी सहित उपवनों में जाकर,॥2॥

बूझहिं बैठि राम गुन गाहा।

कह हनुमान सुमति अवगाहा॥

सुनत बिमल गुन अति सुख पावहिं।

बहुरि बहुरि करि बिनय कहावहिं॥3॥

वहाँ बैठकर श्री रामजी के गुणों की कथाएँ पूछते हैं और हनुमान्‌जी अपनी सुंदर बुद्धि से उन गुणों में गोता लगाकर उनका वर्णन करते हैं। श्री रामचंद्रजी के निर्मल गुणों को सुनकर दोनों भाई अत्यंत सुख पाते हैं और विनय करके बार-बार कहलवाते हैं॥3॥

सब कें गृह गृह होहिं पुराना।

राम चरित पावन बिधि नाना॥

नर अरु नारि राम गुन गानहिं।

करहिं दिवस निसि जात न जानहिं॥4॥

सबके यहाँ घर-घर में पुराणों और अनेक प्रकार के पवित्र रामचरित्रों की कथा होती है। पुरुष और स्त्री सभी श्री रामचंद्रजी का गुणगान करते हैं और इस आनंद में दिन-रात का बीतना भी नहीं जान पाते॥4॥

अवधपुरी बासिन्ह कर

सुख संपदा समाज।

सहस सेष नहिं कहि सकहिं

जहँ नृप राम बिराज॥26॥

जहाँ भगवान्‌ श्री रामचंद्रजी स्वयं राजा होकर विराजमान हैं, उस अवधपुरी के निवासियों के सुख-संपत्ति के समुदाय का वर्णन हजारों शेषजी भी नहीं कर सकते॥26॥

नारदादि सनकादि मुनीसा।

दरसन लागि कोसलाधीसा॥

दिन प्रति सकल अजोध्या आवहिं।

देखि नगरु बिरागु बिसरावहिं॥1॥

नारद आदि और सनक आदि मुनीश्वर सब कोसलराज श्री रामजी के दर्शन के लिए प्रतिदिन अयोध्या आते हैं और उस (दिव्य) नगर को देखकर वैराग्य भुला देते हैं॥1॥

जातरूप मनि रचित अटारीं।

नाना रंग रुचिर गच ढारीं॥

पुर चहुँ पास कोट अति सुंदर।

रचे कँगूरा रंग रंग बर॥2॥

(दिव्य) स्वर्ण और रत्नों से बनी हुई अटारियाँ हैं। उनमें (मणि-रत्नों की) अनेक रंगों की सुंदर ढली हुई फर्शें हैं। नगर के चारों ओर अत्यंत सुंदर परकोटा बना है, जिस पर सुंदर रंग-बिरंगे कँगूरे बने हैं॥2॥

नव ग्रह निकर अनीक बनाई।

जनु घेरी अमरावति आई॥

लमहि बहु रंग रचित गच काँचा।

जो बिलोकि मुनिबर मन नाचा॥3॥

मानो नवग्रहों ने बड़ी भारी सेना बनाकर अमरावती को आकर घेर लिया हो। पृथ्वी (सड़कों) पर अनेकों रंगों के (दिव्य) काँचों (रत्नों) की गच बनाई (ढाली) गई है, जिसे देखकर श्रेष्ठ मुनियों के भी मन नाच उठते हैं॥3॥

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