Azadi ke baad cinema me aye takniki badlavom ki suchi tayaar kigiya
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Explanation:
सिनेमा देखते समय मनुष्य अपने जीवन को वास्तविक कठिनाइयों और कटुता भुला कर कल्पनामय सुखद लोक मे विचरण करने लगता है । उसके जीवन की एकरसता दूर हो जाती है । साधारण व्यक्ति का जीवन संघर्षमय और ऊब से भरा होता है । इस नीरसता को दूर करने में सिनेमा बडी प्रभावशाली भूमिका निभाता है । गरीब-से-गरीब व्यक्ति अपने जीवन के सभी अभावों और कटुताओं को कुछ देर के लिए भूल कर कल्पना-लोक में भ्रमण करने लगता है ।
इस प्रकार समाज के प्रत्येक वर्ग के लोगों का मनोरंजन करने का यह बडा सशक्त और सुगम साधन है । पर्दे पर देश-विदेश के मनोहारी दृश्य, हैरतअंगेज कार्य, रोमांस का वातावरण और सुन्दर तथा विशाल अट्टालिकायें आदि देखकर सभी व्यक्ति पुलकित और आनन्दित हो उठते हैं ।सिनेमा केवल मनोरंजन का ही साधन नहीं है, इसके अनेक लाभ भी है । इसने रगमच का विकास किया है । नाटको में बहुत-से दृश्यों को आसानी से नहीं दिखाया जा सकता था, उन्हें सिनेमा बड़ी सरलता से दिखाने में समर्थ है ।
सिनेमा के माध्यम से अनेक कलाओं का विकास हुआ है । बड़े-बड़े सेटों के लगने में मूर्तिकला और और वास्तुकला के विकास में भी सिनेमा ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है । संगीत, नृत्य, काव्य-कला, कथोपकथन आदि कलाओं की व्यापक उन्नति सिनेका की हो देन है ।
शिक्षा की दृष्टि स भी सिनेमा खड़ा उपयोगी सिद्ध हुआ है । सामाजिक बुराइयों को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करके सिनेमा अपने दर्शकों को उनके प्रति सचेत करता है । सिनेमा ने सामाजिक बुराइयों को दूर करके और उपाय सुझाकर हमारे ज्ञान को बढाने मैं बडी मदद दी है । वास्तविक जीवन में भूत, वर्तमान और भविष्य को एक साथ देखना संभव नहीं होता ।
सिनेमा के पर्दे पर इसे हम आसानी से देख सकते हैं । पुस्तकों के पढ़ने की अपेक्षा सिनेमा के पर्दे पर देखी गई बातों का प्रभाव अधिक व्यापक, स्थायी और प्रत्यक्ष होता है । जो बात सप्ताहों तक पुस्तकों को पढकर हम आत्मसात नहीं कर पाते, उन्हें सिनेमा द्वारा कुछ घंटों में ही आसानी से समझ सकते हैं । समाज की मनोवृत्ति को बदलने में सिनेमा बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।
सिनेमा प्रचार का बड़ा सशक्त माध्यम है । किसी संदेश को व्यापक रूप से प्रसारित करने में सिनेमा बडा उपयोगी सिद्ध होता है । युद्ध या किसी राष्ट्रीय संकट के काल में प्रभावी चलचित्रों के माध्यम से जनता का मनोबल बढाकर उनमें जागृति लाई जा सकती है ।
सिनेमा से जहा अनेक लाभ हैं, वहाँ कुछ हानियाँ भी हैं । सिनेमा देखकर दर्शक जीवन की वास्तविकता से दूर होकर हवाई किले बनाने लगता है । भारत के चलचित्रों में अधिकांशत: प्रेम-कहानियां दिखाई जाती है ।
कहीं-कहीं अश्लीलता दिखाने में भी संकोच नहीं होता । इनका किशोर मन पर बड़ा बुरा प्रभाव पडता है । वे छोटी उम्र से ही अपने आवेगो पर से नियंत्रण खो बैठते है ।
सिनेमा से युताउगें में नए-नए फैशन का बडा प्रचार होता है । सिनेमा चकातौन से प्रभावित होकर अनैयन् लोग पुरे कामों में पडकर अपने शौकों को पूरा करने के लिए धन जुटाते है । मार-काट, हिंसा, बलात्कार, चोरी और डकैती आदि के व्यापक प्रदर्शन से बाल यघैर युवा गन पर बड़ा बुरा प्रभाव पड़ता है । इनके फलस्वरूप समाज में हिंसा और अव्यवस्था फैलती जा रही हे ।
सिनेमा का स्वास्थय पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है । बन्द हाल में घंटों तक स्वचच्छ वायु नहीं मिलती । इसमें सांस लेकर हमारे फेफड़े कमजोर हो जाते है । हमारे आखों पर भी सिनेमा के पर्दे पर पड़ने वाली तेज रोशनी का बुरा प्रभाव पड़ता है ।
उपसंहार:
ऊपर बताई गई हानियाँ सभी सिनेमा की बुराइयाँ नहीं कही जा सकती । अधिकांश बुराइया निर्माताओं की अदूरर्शिता और धन-लोलुपता के कारण हैं । यदि निर्माताओं उद्देश्य केवल धन कमाना ही न हो, तो हमारी फिल्मो को स्तर ऊँचा उठ सकता है और इनकी मदद से देश का बड़ा उपकार हो सकता है । यदि इन बुराइयों को दूर कर दिया जाये, तो निश्चय ही सिनेमा मानव-जीवन के विकास और देश के निर्माण में बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है ।