बाग, वाशिवाय ज्यात वनू ही पाच बापाला
उपवन-सघन वनालि, सुखमा सदन, सुखाली
कले प्रावट के सांद धन की शोभा निपट निराली
कमनीय-दर्शनीया कृषि कर्म की प्रणाली
सुर-लोक की छटा को पृथिवी पे ला रहा है।
भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है ।
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