बड़े घर की बेटी होकर भी आनंदी अपने ससुराल मे कैसे प्रसन्न्तापूर्वक् रहने लगे
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बड़े घर की बेटी’ एक संयुक्त परिवार की कहानी है । ठाकुर बेनीमाधव सिंह गौरीपुर गाँव के ज़मींदार थे। उनके पितामह किसी समय बड़े धन- धान्य से सम्पन्न थे । पर बेनीमाधव सिंह अपनी आधी से अधिक सम्पत्ति वकीलों को भेंट कर चुके थे। उनकी वर्त्तमान आय एक हज़ार रुपए वार्षिक से अधिक न थी। ठाकुर साहब के दो बेटे थे। बड़े का नाम श्रीकंठ सिंह था । वह बहुत परिश्रमी था। उसने बी०ए० की डिग्री प्राप्त की थी, पर पढ़ाई ने शरीर को निर्बल और चेहरे को कांतिहीन बना दिया था। छोटा लड़का लालबिहारी सिंह दोहरे बदन का सजीला जवान था। भैंस का दो सैर ताज़ा दूध वह सवेरे उठकर पी जाता था। पढ़े-लिखे होने के पश्चात् भी श्रीकंठ पाश्चात्य सामाजिक प्रथाओं के विशेष प्रेमी न थे। वह संयुक्त परिवार के प्रेमी थे बड़े उत्साह से रामलीला में सम्मिलित होते और स्वयं किसी न किसी पात्र का अभिनय करते थे। स्त्रियों को कुटुम्ब में मिल-जुलकर रहने की जो अरुचि होती है, उसे वह देश और जाति दोनों के लिए हानिकारक समझते थे । यही कारण था कि गाँव की ललनाएँ इनकी निंदक धीं। यहाँ तक कि स्वयं इनकी पत्नी का इस विषय में उनसे विरोध था। श्रीकंठ की पत्नी आनंदी भूपसिंह नामक एक रियासत के ताल्लुकेदार की रूपवती, गुणवती व प्रिय कन्या थी। श्रीकंठ भूपसिंह के पास चंदा माँगने गए थे उन्हें देखकर, प्रभावित होकर, भूपसिंह ने अपनी वेटी आनन्दी की शादी उनसे कर दी थी।जिस टीम-टाम की आनंदी को बचपन से ही आदत थी, वह यहाँ नाम-मात्र को भी न थी। यह एक सीधा-सादा देहाती गृहस्थ का मकान था, किन्तु आनन्दी ने थोड़े दिनों में ही अपने को नई परिस्थिति के अनुकूल बना लिया था।एक दिन लालबिहारी सिंह दो चिड़ियाँ लाए और अपनी भाभी आनंदी से पकाने के लिए कहा। आनंदी ने नया व्यंजन बनाने में पाव भर घी डाल दिया। दाल के लिए बिल्कुल भी घी न बचा। लालबिहारी सिंह खाने बैठा तो दाल में घी न देखकर भाभी से घी की माँग की। परन्तु भाभी ने कहा कि मैंने सारा घी मांस पकाने में ही डाल दिया है। लालबिहारी को बहुत गुस्सा आया। तुनककर बोला- ‘मैके में तो जैसे घी की नदी बहती हों।’ परन्तु आनंदी मैके का व्यंग्य सहन न कर सकी। उसने कहा-‘वहाँ तो इतना घी नित्य नाई-कहार खा जाते हैं।बस इसी बात पर भाभी देवर में कहासुनी हो गई। लालबिहारी ने खड़ाऊँ उठाकर आनंदी की ओर ज़ोर से फेंकी। आनंदी ने हाथ से खड़ाऊँ रोकी। सिर बच गया, पर उँगली में काफ़ी चोट आई।स्त्री का बल, साहस, मान और मर्यादा पति तक है। अत: आनंदी ख़ून का घूँट पीकर रह गई।श्रीकंठ शनिवार को घर आया करते थे। बृहस्पतिवार को यह घटना घटी थी। दो दिन तक आनंदी कोपभवन में रही थी। न कुछ खाया न कुछ पिया, बस श्रीकंठ की बाट देखती रही।अंत में शनिवार को श्रीकंठ घर आए। बाहर बैठकर इधर-उधर की बातें होती रहीं। श्रीकंठ के घर आने पर लालबिहारी ने भाभी की शिकायत की। पिता ने भी उसका साथ दिया। परंतु बाद में पूरी बात जानने पर जब श्रीकंठ ने कहा कि इस घर में या तो वह रहेगा, या लालबिहारी। तो लालबिहारी रोते हुए भाभी से माफ़ी माँगता है। भाभी ठहरी बड़े घर की बेटी। उसके संस्कार ऐसे थे कि न केवल उसने लालबिहारी को माफ़ किया अपितु उसे माफ़ करने के लिए पति को भी प्रेरित किया। टूटता घर जुड़ गया। पिता भी आनन्द से पुलकित हो गए और कह उठे कि बड़े घर की बेटियाँ ऐसी ही होती हैं जो बिगडता हुआ काम बना दें। इस प्रकार जो झगड़ा उसके मायके के धन-उस घर- के संस्कारों के कारण हुआ। उन संस्कारों में दूसरों की भावनाओं की कद्र करना, दोषों को क्षमा करना तथा मिलजुल कर रहने की भावना थी। इस तरह बड़े घर के संस्कारों की पहचान व्यक्ति के गुणों से होती है न कि उसके धन से।