बिहारी की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए
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“बिहारी लाल की भक्ति भावना”
हिंदी साहित्य में रीति काल के कवियों में बिहारी का नाम महत्वपूर्ण है। बिहारीलाल मुख्य रूप से श्रृंगारी कवि हैं। उनकी भक्ति भावना राधा कृष्ण के प्रति है। सतसई के आरंभ में मंगलाचरण का यह दोहा राधा के प्रति उनके भक्तिभाव का ही परिचायक है। "मेरी भव बाधा हरो, राधा नागरि सोय"बिहारी लाल ने भक्ति भावना के माध्यम से प्रकृति चित्रण का भी बहुत सुंदर वर्णन किया है । जिसमें में से उन्होंने सभी ऋतु ओं का उल्लेख किया है। वे राधा कृष्ण के भक्त हैं तथा उनके प्रति उनके मन में बड़ी आदर और श्रद्धा है। उन्हें विश्वास है कि भगवान श्री कृष्ण की शरण में जो आता है उन सब का कल्याण हो जाता है।
बिहारी की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए
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महाकवि बिहारीलाल का जन्म जन्म 1603 के लगभग ग्वालियर में हुआ। बिहारी मूलतः श्रृंगारी कवि हैं।
उनकी भक्ति-भावना राधा-कृष्ण के प्रति है प्रकट हुई थी। कृति-चित्रण में बिहारी किसी से पीछे नहीं रहे हैं।
बिहारी सतसईश्रृंगार रस की अत्यंत प्रसिद्ध और अनूठी कृति है। इसका एक-एक दोहा हिंदी साहित्य का एक-एक अनमोल रत्न माना जाता है।
श्रंगार रस में स्थाई भाव रति होता है इसके अंतर्गत सौन्दर्य, प्रकृति, सुन्दर वन, वसंत ऋतु, पक्षियों का चहचहाना आदि के बारे में वर्णन किया जाता है| श्रंगार रस में सुख की प्राप्ती होती है | श्रृंगार रस में प्रेम,मिलने, बिछुड़ने आदि जैसी क्रियायों का वर्णन होता है तो वहाँ श्रृंगार रस होता है|