बिहारी लाल की काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालें ।
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काव्यगत विशेषताएं
बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय। सोह करे, भौंहनु हंसे दैन कहे, नटि जाय।। बिहारी का वियोग, वर्णन बड़ा अतिशयोक्ति पूर्ण है। यही कारण है कि उसमें स्वाभाविकता नहीं है, विरह में व्याकुल नायिका की दुर्बलता का चित्रण करते हुए उसे घड़ी के पेंडुलम जैसा बना दिया गया है - इति आवत चली जात उत, चली, छेसातक हाथ।
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