बिहार में कृषि आधारित उद्योग के विकास की संभावनाओं का उल्लेख करें।
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चीनी उद्योग राज्य का सबसे पुराना उद्योग है. बिहार में चीनी का पहला कारखाना 1840 ईसवी में बेतिया में डचों द्वारा प्रारंभ किया गया था.
वर्तमान में देश में चीनी उत्पादन हेतु बिहार में 28 चीनी मिलें हैं, हालांकि इनमें अधिकांश जर्जर हो चुकी है तथा कुछ बंद भी हो गई है, जिन्हें पुनर्जीवित कर के राज्य में चीनी उद्योग की स्थिति को ठीक करने की कोशिश की जा रही है. सम्प्रति बिहार राज्य चीनी निगम की लोरियां और सुगौली इकाइयाँ हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड को जनवरी 2009 में 60 वर्षों की लीज पर दी गई थी. लीज की अवधि को 30 वर्ष के लिए बढ़ाया भी जा सकता है.
बिहार में चीनी उद्योग के प्रमुख केंद्र डालमियानगर, मीरगंज, सिवान, समस्तीपुर, मझौलिया, बिहटा, गोपालगंज, बेतिया और छपरा है. गुरारू, महाराजा गंज, हरि नगर, वारसलीगंज, लोहावट, मोतीपुर, हसनपुर, सासामुसा आदि में भी चीनी मिलें स्थित है. सन 2000 में राज्य के विभाजन के बाद वर्तमान बिहार में यह सबसे बड़ा उद्योग है.
बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार राज्य में 28 में से 9 चीनी मिल कार्यशील है. बिहार राज्य चीनी निगम के तहत दो नए चीनी मिल है, जिन्हें 2011 में लीज के आधार पर एचपीसीएल को सौंप दिया गया था. वर्ष 2014-15 के पेराई मौसम के दौरान कुल 574.445 लाख टन ईख की परोई हुई है और 52.67 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है. चीनी का उत्पादन 2013-14 के स्तर से 11% कम है. चीनी प्राप्ति की दर 2012-13 के 8.6% से थोड़ा बढ़कर 2014-15 में 9.2% हो गई.