'बेहोश जो पड़े हैं' से कवि का क्या तात्पर्य है?
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सोच-समझकर नासमझ बनना।
खुली आँखों से गलत काम देखने के बाद भी आँखो पर पट्टी बंधी होने जैसी हरकते करना, अत्याचार के खिलाफ आवाज ना उठाना यह बेहोश पड़े होने के ही बराबर है ।
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