बिहसि लखनु बोले मृदु बानी । अहो मुनीसु महाभट मानी ।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू । चहत उड़ावन फूंक पहारू ।
इहा कुम्हड़बतिया कोऊ नाहीं । जे तरजनी देखि मरि जाहीं ।
देखि कुठारू सरासन बाना । मैं कुछ कहा सहित अभिमाना ।
भृगु सुत समुझि जनेऊ बिलोकी । जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी ।
सुर महिसुर हरिजन अरू गाई । हमरे कुल इन्ह पर न सुराई
बधे पापु अपकीरति हारें । मारतहू पा परिअ तुम्हारे ।
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा । व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा ।
जो विलोकि अनुचित कहेऊँ छमहु महामुनि धीर ।
सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर ।।
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(ii) केन विना लालिमा न भवति?
(ii) सर्वे कया जिघ्रन्ति?
(iv) सर्वे केन खादन्ति?
(v) जनाः कया विनम्राः भवन्ति(ii) केन विना लालिमा न भवति?
(ii) सर्वे कया जिघ्रन्ति?
(iv) सर्वे केन खादन्ति?
(v) जनाः कया विनम्राः भवन्ति
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