Hindi, asked by BrainlyVirat, 1 year ago

" बुजुर्ग आदर - सम्मान के पात्र होते है ,दया के नहीं "

अपने विचार लिखो..

Answers

Answered by Anonymous
93
बुजुर्ग :

वो लोग जिन्हें हम परिभाषित नहीं कर सकते ।

हमसे कई गुना अनुभवी लोग ।

आदर एवं सम्मान के पात्र ।

जी हाँ !! आदर के योग्य । आज कल हम सब इतने पथर दिल हो गए है की हम उन्हें दया एवम् करुणा के भाव से देखते है जबकि वे हमसे वात्सल्य प्रेम की भावना रखते है ।

एक साधारण सा उदहारण -

एक बेटा अपने वृद्ध पिता या माता को वृद्ध आश्रम में छोड़ कर आता है ।

क्यों ??

=> क्योंकि अब वो घर उनके लिए छोटा हो गया है ।

पर वो अपने भविष्य के बारे में क्यों नहीं सोचता ।

क्या उसके बच्चे उसके साथ ऐसा नहीं करेंगे ।

इसका जवाब वह खुद भी जानता है ।


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आखिर इन सबके पीछे क्या कारण है ?

=> हमारे घटते संस्कार ।

हमारे संस्कार दिन प्रति दिन घटते जा रहे है ।

याद रखिये

अगर प्राण जाते है तो मानव मरता है

लेकिन अगर संस्कार जाते है तो मानवता मरती है ।

★ AhseFurieux ★

BrainlyVirat: Thanks a lottt
Anonymous: Glad to hear these words... I am at the top of the seventh sky to help you... hope i will help you again in future ✌
BrainlyVirat: ^^ .. thanks :)
WritersParadise01: superb cupcake! the way u wrote is really awesome ☺️
Anonymous: Really it is an outstanding moment to have such an amazing compliment... I will try to give more better Answers
WritersParadise01: :)
darshita93: nice answer....
Anonymous: thank you
Answered by MysteriousAryan
14

Answer:

old \: man

बुजुर्गों के प्रति बढ़ते दुर्व्यवहार व अन्याय के प्रति लोगों को जागरुक करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 1 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस का आयोजन किया जाता है। 14 दिसंबर 1990 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने यह निर्णय लिया था कि प्रतिवर्ष 1 अक्टूबर को बुजुर्गों के सम्मान तथा उनकी सुरक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस का आयोजन किया जाए। सर्वप्रथम 1 अक्टूबर 1991 को इस दिवस का आयोजन किया गया, तत्पश्चात पिछले 28 सालों से यह दिवस विश्व के अनेक देशों में आयोजित किया जाता है। इस दिवस के आयोजन का एकमात्र लक्ष्य यह है कि लोगों को बड़े-बुजुर्गों के आदर और देखभाल के लिए प्रेरित किया जाए।।

देश में औद्योगीकरण और नगरीकरण के विस्तार के साथ परिवार के मूल स्वरुप में भी व्यापक परिवर्तन हुए हैं। वहीं, बदलते सामाजिक परिवेश में संयुक्त परिवारों का विखंडन बड़ी तेजी से एकल परिवार के रुप में हुआ है। अब गिने-चुने परिवारों में ही संयुक्त परिवार की अवधारणा देखने को मिलती है। शहरों में एकल परिवार का ही बोलबाला है, जबकि सामाजीकरण की इस प्रक्रिया से अब गांव भी अछूते नहीं रहे। हालांकि, विघटित संयुक्त पारिवारिक व्यवस्था के एकल स्वरुप ने आधुनिक और परंपरागत;दोनों पीढ़ियों को समान रुप से प्रभावित किया है।

एक तरफ जहां, आज की कथित आधुनिक पीढ़ी परंपरागत पालन-पोषण, बुजुर्ग सदस्यों के प्यार-दुलार तथा सामाजिक मूल्यों-संस्कारों से दूर होती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ एकल परिवारिक व्यवस्था ने बुजुर्गों को एकाकी जीवन जीने को विवश किया है।तिरस्कृत जीवन बिता रहे बुजुर्ग : देश में बुजुर्गों का एक बड़ा तबका या तो अपने घरों में तिरस्कृत व उपेक्षित जीवन जी रहा है या वृद्धाश्रमों में अपनी शेष जिंदगी बेबसी के साये में बिताने को मजबूर है। इस बीच, समाज में बुजुर्गों पर होने वाले मानसिक और शारीरिक अत्याचार के बढ़ते मामलों की तेजी ने भी चिंताएं बढ़ा दी हैं। परिजनों से लगातार मिलती उपेक्षा, निरादर भाव तथा सौतेले व्यवहार ने वृद्धों को काफी कमजोर किया है। बुजुर्ग जिस सम्मान के हकदार हैं, वह उन्हें नसीब नहीं हो पा रहा है।

यही उनकी पीड़ा की मूल वजह है। दरअसल, देश में जन्म दर में कमी आने तथा जीवन-प्रत्याशा में वृद्धि की वजह से देश में वृद्धों की संख्या तेजी से बढ़ी है, लेकिन दूसरी तरफ गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा व समुचित देखभाल के अभाव तथा परिजनों के दुत्कार की वजह से देश में बुजुर्गों की स्थिति बेहद दयनीय हो गई है। भारत इस वक्त दुनिया का सबसे युवा देश है। देश में युवाओं की तादाद 65 फीसद है। लेकिन, बीते दिनों अमेरिका के ‘जनसंख्या संदर्भ ब्यूरो’ द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2050 तक आज का युवा भारत तब ‘बूढ़ा’ हो जाएगा। उस समय देश में पैंसठ साल से अधिक उम्र के लोगों की संख्या 3 गुणी तक बढ़ जाएगी। सवाल यह है कि क्या तब हम अपनी ‘वृद्ध जनसंख्या’ की समुचित देखभाल की पर्याप्त व्यवस्था कर पाएंगे?

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