बुजुर्गों की समस्या पर अनुच्छेद लेखन।
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बुजुर्ग हमारी धरोहर हैं, यदि समाज या घर में आयोजित धार्मिक कार्यक्रम में कुछ गलत हो रहा है, तो इसे बताने के लिए इन बुजुर्गों के अलावा कोन है, जो हमें सही बताएगा? शादी के ऐन मौके पर जब वर या वधू पक्ष के गोत्र बताने की बात आती है, तो घर के सबसे बुजुर्ग की ही खोज होती है। आज की युवा पीढ़ी भले ही इसे अनदेखा करती हो, पर यह भी एक सच है, जो बुजुर्गों के माध्यम से सही साबित होता है। घर में यदि कंप्यूटर है, तो अपने पोते के साथ गेम खेलते हुए कई बुजुर्ग भी मिल जाएँगे, या फिर आज के फैशन पर युवा बेटी से बात करती हुई कई बुजुर्ग महिलाएँ भी मिल जाएँगी। यदि आज के बुजुर्ग यह सब कर रहे हैं, तो फिर उन पर यह आरोप तो बिलकुल ही बेबुनियाद है कि वे आज की पीढ़ी के साथ कदमताल नहीं करते।
बुजुर्ग हमारे साथ बोलना, बतियाना चाहते हैं, वे अपनी कहना चाहते हैं और दूसरों की सुनना भी चाहते हैं। पर हमारे पास उनकी सुनने का समय नहीं है, इसीलिए हम उनकी सुनने के बजाए अपनी सुनाना चाहते हैं। याद करो, अपनेपन से भरा कोई पल आपने अपने घर के बुजुर्ग को कब दिया है? शायद आपको याद ही नहीं होगा। क्योंकि अरसा बीत गया, इस बात को। इसे ही दूसरी दृष्टि से देखा जाए कि ऐसा कौन-सा पल है, जिसे घर के बुजुर्ग ने आपसे बाँटना नहीं चाहा? बुजुर्ग तो हमें देना चाहते हैं, पर हम ही हैं कि उनसे कुछ भी लेना नहीं चाहते। हमारा तो एक ही सिध्दांत हैं कि बुजुर्ग यदि घर पर हैं, तो शांत रहें, या फिर बच्चों और घर की सही देखभाल करें। इससे अधिक हमें कुछ भी नहीं चाहिए।
आज के बुजुर्ग केवल स?जी लाने, बच्चों को स्कूल लाने-ले जाने, गेहूँ पिसवाने, बिजली या टेलीफोन का बिल जमा करवाने के लिए नहीं हैं, उनसे कभी कहानियों का पिटारा खोलने को कहकर तो देखें, फिर देखो, किस तरह से निकलती हैं, उनके पिटारे से शिक्षाप्रद और रहस्यमयी कहानियाँ। कभी सुनी हैं उनके पोपले मुँह से मीठी लोरियाँ? हाथ चाट जाए, ऐसे अचार की रेसीपी आखिर किसके पास मिलेगी? और तो और घर में कभी किसी को कोई छोटी-सी बीमारी हुई, और उसका घरेलू उपचार बताने के लिए किसे ढूँढ़ा जाएगा भला? घर में अचानक फोन आता है कि गाँव में रहने वाले ताऊ या फिर कोई सगे-संबंधी की मौत हो गई हे, तो ऐसे में घर में क्या-क्या करना चाहिए, यह कौन बताएगा? अपने घर की परंपरा किसी पड़ोसी से तो नहीं पूछी जा सकती। उसे तो हमारे घर के बुजुर्ग ही बता पाएँगे।
आज यह धरोहर हमसे दूर होती जा रही है। सरकार तो किसी भी पुरानी इमारत को हेरीटेज बनाकर उसे नवजीवन दे देती है। लोग आते हैं और बुजुर्गों के उस पराक्रम की महिमा गाते हैं। पर घर के ऑंगन में ठकठक की गूँजती आवाज जो हमारे कानों को बेधती है, आज वह आवाज वृध्दाश्रमों में कैद होने लगी है। झुर्रियों के बीच अटकी हुई उनके ऑंसुओं की गर्म बूँदें हमारी भावनाओं को जगाने में विफल साबित हो रही हैं, हमारी उपेक्षित दृष्टि में उनके लिए कोई दयाभाव नहीं है ।