बुजुर्गो की समस्या पर निबंध
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Explanation:
पहले के समय में बच्चों को उनके दादा-दादी के साथ समय व्यतीत करने का काफी मौका मिलता था पर अब वे अलग परिवार बसाने की बढ़ती प्रणाली की प्रवृत्ति के कारण एक-दूसरे से कम ही मिल पाते हैं। जहाँ तक माता-पिता की बात है तो वे कई निजी और व्यावसायिक प्रतिबद्धताओं के कारण अपने बच्चों को दादा-दादी के पास ले जाने का पर्याप्त समय नहीं बचा पाते पर उन्हें किसी भी हाल में एक दूसरे के साथ समय व्यतीत करने के लिए कोशिश करनी होगी। यहां कुछ ऐसे सुझाव दिए गए हैं जो इस दिशा में काम में लिए जा सकते हैं:
अगर आप अपनी पेशेवर प्रतिबद्धताओं के कारण माता-पिता से नहीं मिल पाते हैं या उनके साथ लम्बा समय व्यतीत नहीं कर पाते हैं तो आप अपने बच्चों को कुछ दिनों के लिए अपने माता-पिता के घर छोड़ सकते हैं या अपने माता-पिता को अपने निवास स्थान पर रहने के लिए बुला सकते हैं।
यात्रा करना अक्सर एक परेशानी का सबब बन सकती है हालांकि यह आपको किसी के संपर्क में रहने से रोक नहीं सकती। आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि आपके बच्चे फोन या वीडियो कॉल के माध्यम से नियमित रूप से आपके माता-पिता से बात करते रहें।
आप अपने बच्चों द्वारा लिखे गए पत्र और कार्ड पोस्ट उन्हें अपने दादा-दादी को भेजने के लिए कह सकते हैं। यह थोड़ा पुराने जमाने का एहसास दिला सकता है लेकिन यह निश्चित रूप से स्थायी प्रभाव डाल कर बंधनों के बीच की दूरी ख़त्म कर सकता है।
ई-कॉमर्स पोर्टल्स के आगमन के साथ उपहार भेजना आसान हो गया है। अपने बच्चों को अपने दादा-दादी के लिए उपहारों का चयन करने में मदद करें और उन्हें विशेष अवसरों पर भेजने में सहायता करें।
Answer:
Explanation:
इतिहास इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि प्राचीन काल में वृद्धों की सिथति अत्यंत उन्नत एवं सम्मानीय रही हैं। उन्हें समाज एवं परिवार में अलग वर्चस्व था। परिवार की समस्त बागडोर उनके हाथों हुआ करती थी। परिवार को कोर्इ फैसला उनकी सलाह व मसविरे के आधार पर होता था। उन्हीं की सत्ता एवं प्रभाव के कारण पहले संयुक्त परिवार हुआ करते थे, वे परिवार के सदस्यों को एक धागे में बांधें रखते थे, परंतु भौतिकवादी युग में वृद्धों की समस्याओं का बढ़ना एवं समाज में उनकी उपयोगिता कम और समस्याएं बढ़ती नजर आ रही है। बुढ़ापा जीवन का अंतिम पड़ाव है और इस पड़ाव में जीवन असक्त हो जा है। कार्य करने की क्षमता कमजोर हो जाती है। भरण-पोषण के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। यही निर्भरता वृद्धों की समस्याओं की मूल हैं। शारीरिक एवं आर्थिक दृषिट से घुटन भरी जिन्दगी जीने को विवश हो जाती है। चाहे वह शिक्षित हो या अशिक्षित क्यों न हो, इस अवस्था में उनकी गाड़ी चरमराने लगती है, वह युवा पीढ़ी से तालमेल नहीं बैठा पाते है, जिससे उनकी समस्याओं की वृद्धि हो जाती है। विश्व में समाज का बहुत बड़ा हिस्सा ऐसा है कि जहां वृद्धावस्था में अब सामाजिक एवं आर्थिक असुरक्षा के कष्ट झेलते है। युवा वर्ग वृद्धों को कोर्इ महत्व नहीं देते हैं।
वृद्ध पुरूषों के समस्या के कारण :
आज हमारे देश में समस्याओं को बढ़ने के अनेक कारण है जो समाज की देन है। भारतीय समाज ऐसा समाज है जहां आज भी देखा जाता है लेकिन जैसे-जैसे पशिचमीकरण, भैतिकवाद का विकास हुआ वैसे-वैसे वृद्धों को उपेक्षा का शिकार होकर समस्याओं में घिर गये है। आज इन वृद्धों की समस्याओं के बहुत से कारण है, जो इस प्रकार है:-
1. संयुक्त परिवार का विघटन
2.भौतिक सुख सुविधाओं की वृद्धि
3.. नर्इ-पुरानी पीढ़ी के बीच फासला
4.धन का महत्व
5.व्यकितवादिता या व्यकिगत स्वार्थ
निष्कर्ष : इस अध्ययन से ज्ञात होता है कि नागपुर शहर की मलिन वसितयों में रहने वाले पुरूष वृद्धों की मध्य आयु 66 वर्ष है। वे हिन्दू या बौद्ध धर्म के है। अधिकतर मराठी भाषी है और वे अधिकतर पिछड़े वर्ग के है तथा वे साक्षर है। लेकिन वे व्यवसिथत नहीं हैं। 3 से 6 सदस्य के परिवार में रहने वाले इन वृद्धों को 3 से 4 संतानें है। अधिकांश वृद्धों को तंबखू व शराब दोनों का व्यसन है। आधे से अधिक और आधे से कुछ वृद्ध अभी भी जीवन यापन के लिए कमार्इ करते है जिसकी मासिक आय 2000 रूपये है एवं अधिकांष वृद्ध स्वयं के घर में रहते है।
वृद्धों को महसूस होने वाली प्रमुखतम शारीरिक समस्या है और अधिकांष वृद्धों को स्वास्थ्य सेवाओं में अभाव की समस्या से काफी तीव्रता से महसूस होती है। वृद्धों की सबसे बड़ी आर्थिक समस्या है। उनकी आवष्यकताओं की पूर्ति के लिए उन्हें आर्थिक संसाधनों की कमी तीब्रता से महसूस होती है। तीसरी प्रमुखमत समस्या पराबलंबन की भावना, समाज एवं परिवार में अनादर, अकेलेपन की भावा, अनुपयोगिता की भावना इत्यादि अन्य समस्याएं हैं जो वृद्धों को महसूस होती है।
सुझाव :
अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि शारीरिक समस्या वृद्धों की प्रमुखतम समस्या है और इस बजह से संषोधनकर्ताओं का सुझाव है कि मलिन वसितयों में वृद्धों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सेवायें उपलब्ध कराया जाए एवं स्वास्थ्य षिक्षा के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाय। वृद्धों की आर्थिक समस्या कम करने के लिए और अकेलापन की भावना इत्यादि को कम करने के लिए वृद्धों के लिए स्वयं सहायता समूह विकसित किये जाए, जिससे उन्हें आर्थिक सहायता मिलेगी। उनका अनुभव विकसित होगा और अकेलेपन की भावना भी कम होगी। वसितयों में परिवार जीवन, षिक्षा के क्षेत्र में कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए, जिससे वृद्धों की देखभाल एवं उनकी उचित आदर से संबंधित बातें लागों को बताना चाहिए।