बीज स्वभाव उद्गम पर टिप्पणी लिखिए।
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प्रदेश के कृषि में बीज गुणता का विशिष्ट महत्व है क्योंकि हमारे यहॉ फसलों की आवश्यकतानुसार सर्वोत्त जलवायु होते हुए भी लगभग सभी फसलों का औसत उत्पादन बहुत ही कम है। जिसका प्रमुख कारण प्रदेश के कृषकों द्वारा कम गुणता वाले बीजों का लगातार प्रयोग है। जिससे फसलों में दी जाने वाली अन्य लागतों का भी हमें पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता है। फसलों में लगने वाले अन्य लागत का अधिकतम लाभ अच्छी गुणता वाले बीजों का प्रयोग करके ही लिया जा सकता है। उच्च गुणवत्ता के प्रमाणित बीज के प्रयोग से ही लगभग 20 प्रतिशत उत्पादकता/उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है।
अतः किसान भाईयों को चाहिए कि वे अपनी फसलों के बीज जैस-धान, गेहूं, समस्त दलहनी फसलें एवं राई-सरसों तथा सूरजमुखी को छोड़कर समस्त दलहनी फसलों का बीज प्रत्येक तीन वर्ष में बदल कर बुवाई की जानी चाहिए।इसी प्रकार ज्वार, बाजरा, मक्का, सूरजमुखी, अरण्डी एवं राई/सरसों की फसलों में प्रत्येक तीन वर्षा पर बीज बदल कर बुवाई की जानी चाहिए।
उस बीज को उत्तम कोटि का माना जाता है जिसमें आनुवांशिक शुद्धता शत-प्रतिशत हो अन्य फसल एवं खरपतवार के बीजों से रहित हो, रोग व कीट के प्रभाव से मुक्त हो, जिसमें शक्ति और ओज भरपूर हो तथा उसकी अंकुरण क्षमता उच्च कोटि की हो, जिसमें खेत में जमाव और अन्ततः उपज अच्छी हो।
कृषि विभाग द्वारा खरीफ, रबी एवं जायद फसलों के विभिन्न प्रजाति के प्रमाणित बीजों का वितरण सभी जनपदों के विकास खण्ड स्थिति बीज भण्डार के माध्यम से उपलब्ध कराया जा रहा है।
अतः किसान भाईयों से अनुरोध है कि अपने विकास खण्ड से बीज प्राप्त कर अपने पुराने बीजों को बदलते हुए प्रमाणित बीजों से बुवाई करें, जिससे उनकी फसलों के उत्पादन में वृद्धि हो।
शोधित बीज बच जाने पर पुनः प्रयोग करें। बीज प्रयोगशाला से पुनः जमाव परीक्षण कराकर मानक के अनुरूप होने पर पुनः बोया जा सकता है।
देश एवं प्रदेश की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या की जीविका कृषि पर आधारित है। जिसके आर्थिक एवं सामाजिक स्तर में वांछित सुधार केवल खेती के सुदृढ़ीकरण से ही संभव हैं। इन उन्नतिशील प्रजातियों के उच्च गुणवत्तायुक्त बीजों का टिकाऊ कृषि उत्पादन में उच्च स्थान है। कृषकों को मात्र नवीनतम प्रजातियों के प्रमाणित बीज ही उपलब्ध करा देने से उत्पादन में 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है।
प्रदेश में गेहूं, धन एवं अन्य फसलों की प्रतिस्थापना दर क्रमशः 30, 25, एवं 5-8 प्रतिशत के लगभग हैं जबकि संकर बीजों के प्रयोग से 15 से 20 प्रतिशत तक अधिक उपज प्राप्त होती है
बीज
पौधे का वह भाग जिसमें भ्रूण अवस्थित है, जिसकी अंकुरण क्षमता, आनुवंशिक एवं भौतिक शुद्धता तथा नमी आदि मानकों के अनुरूप होने के साथ ही बीज जनित रोगों से मुक्त है।