Hindi, asked by sana098, 1 year ago

बिखरते संयुक्त परिवार पर निबन्ध ।

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Answered by deshraj141077gmail
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एक ज़माना था जब परिवार में कितने ही लोग होते थे और परिवार हँसता खेलता था और एक दूसरे से एक एकदम जुड़ा रहता था. पैसे कम होते थे पर उसमे भी बहुत बरकत होती थी. घर में कोई ख़ुशी की बात होती थी तो बाहर वालों को बुलाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती थी. आज परिवार कितने छोटे हो गए हैं और टूटते जा रहे हैं, हमारे रिश्ते बिखरते जा रहे हैं. माँ बाप, भाई बहिन, चाचा चची, मामा मामी इत्यादि रिश्ते दिखने में तो बहुत प्रिय लगते हैं, लेकिन उनमे मिठास नाम की चीज़ बिलकुल ख़तम सी होती जा रही है. हरेक को अपनी अपनी पड़ी है कि बस सब कुछ हमें मिल जाये. पीछे मुड़ के देखते तक नहीं कि हम अपनी इस विचारधारा से कितना कुछ खोते चले जा रहे हैं. कोई दिन ऐसा नहीं होगा जब कोई परिवार न टूट रहा हो. एक बाप कितने चाव से घर की आधारशिला रखता है, लेकिन आज उस आधारशिला की ईंटे इतनी कमज़ोर पड़ गई हैं कि जितना मर्ज़ी सीमेंट लगा लो, वो आपस में जुड़ने का नाम ही नहीं लेती. क्या हो गया है हमको, क्यों ऐसा कर रहे हैं हम? बातें तो हम बहुत करते हैं, लेकिन खुद में आये बदलाव को बिलकुल नज़र अंदाज़ कर रहे हैं. दिखावे के लिए रिश्तों को निभाना कुछ एहमियत नहीं रखता, जब तक आप उसे दिल से न माने. आज आप खुश हैं और आप चाहते हैं सब आपकी ख़ुशी में शामिल हों. लेकिन ऐसी ख़ुशी का क्या फायदा जिसमे किसकी दुआ, अपनों का प्यार शामिल ना हो. आज जो आपके पास है, कल वो किसी और के पास भी हो सकता है. दूसरों को अपना बनाने के लिए आप उनके पीछे भाग रहे हैं और जो आपके अपने हैं उनसे आप बिना वजह कट रहे हैं,क्यों? बिना मतलब कोई

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