बाल गोविंद भगत कबीर ke geeto ko gaate aur unke aadesho पे चलते पैड prichay हिंदी explain
Answers
Answered by
0
बाल गोविन्द द्विवेदी का जन्म १५ जनवरी सन् १९४८ में उत्तर प्रदेश के ज़िले फतेहपुर स्थित ग्राम-रारी खुर्द में हुआ। इनके पिता का नाम आचार्य श्री राम प्यारे द्विवेदी था जो स्वयं एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। माता का नाम श्रीमती कमला द्विवेदी था।
शिक्षा : एम० एस० सी० (गणित), एम ए० (हिन्दी), पी-एच डी० कार्यक्षेत्र : डॉ॰ बाल गेविन्द द्विवेदी मूलतः राष्ट्रीय-सांस्कृतिक चेतना के कवि हैं। शिक्षक एवं विज्ञान का अध्येता होने के कारण उनके काव्य में आदर्श एवं सत्य का सुयोग सहज है। डॉ॰ बाल गोविन्द द्विवेदी मंचीय कवि नहीं हैं। वे एक मनीषी कवि हैं जिनकी स्पष्ट जीवन-दृष्टि है। कविता उनके लिए साधना है जिसका साध्य है मनुष्य। इसलिए वे कविता में नारेबाजी और वाहवाही की अपेक्षा न कर साधना-पथ पर निरन्तर चलने में विश्वास करते हैं। अतः उन्हें जनकवि की अपेक्षा जनभावनाओं का कवि कहा जा सकता है। डॉ॰ द्विवेदी की सभी रचनाओं में उनका एकान्त चित्रण प्रस्फुटित हुआ है। कवि की एकान्तिकता केवल चिन्तन के धरातल पर है, अभिव्यक्ति के स्तर पर नहीं। अभिव्यक्ति के स्तर पर कवि के पीछे जन-संमर्द है। डॉ॰ बाल गोविन्द द्विवेदी की कविताएँ उस भीड़ की आवाज हैं, जिसको पता नहीं है कि लोक प्रचलित शैली का उपयोग अपने काव्य में किया तथा गज़ल और गीत को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है।
करम गति टारै करम गति टारै नाहिं टरी॥ टेक॥ मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी सिधि के लगन धरि। सीता हरन मरन दसरथ को बनमें बिपति परी॥ १॥ कहॅं वह फन्द कहॉं वह पारधि कहॅं वह मिरग चरी। कोटि गाय नित पुन्य करत नृग गिरगिट-जोन परि॥ २॥ पाण्डव जिनके आप सारथी तिन पर बिपति परी। कहत कबीर सुनो भै साधो होने होके रही॥ ३॥ ------------------------------------------- रे दिल गाफिल रे दिल गाफिल गफलत मत कर एक दिना जम आवेगा॥ टेक॥ सौदा करने या जग आया पूजी लाया मूल गॅंवाया प्रेमनगर का अन्त न पाया ज्यों आया त्यों जावेगा॥ १॥ सुन मेरे साजन सुन मेरे मीता या जीवन में क्या क्या कीता सिर पाहन का बोझा लीता आगे कौन छुडावेगा॥ २॥ परलि पार तेरा मीता खडिया उस मिलने का ध्यान न धरिया टूटी नाव उपर जा बैठा गाफिल गोता खावेगा॥ ३॥ दास कबीर कहै समुझाई अन्त समय तेरा कौन सहाई चला अकेला संग न को कीया अपना पावेगा॥ ४॥ ------------------------------------------- झीनी झीनी बीनी चदरिया झीनी झीनी बीनी चदरिया॥ टेक॥ काहे कै ताना काहे कै भरनी कौन तार से बीनी चदरिया॥ १॥ इडा पिङ्गला ताना भरनी सुखमन तार से बीनी चदरिया॥ २॥ आठ कँवल दल चरखा डोलै पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया॥ ३॥ साँ को सियत मास दस लागे ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया॥ ४॥ सो चादर सुर नर मुनि ओढी ओढि कै मैली कीनी चदरिया॥ ५॥ दास कबीर जतन करि ओढी ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया॥ ६॥ ------------------------------------------- दिवाने मन दिवाने मन भजन बिना दुख पैहौ ॥ टेक॥ पहिला जनम भूत का पै हौ सात जनम पछिताहौ। कॉंटा पर का पानी पैहौ प्यासन ही मरि जैहौ॥ १॥ दूजा जनम सुवा का पैहौ बाग बसेरा लैहौ। टूटे पंख मॅंडराने अधफड प्रान गॅंवैहौ॥ २॥ बाजीगर के बानर हो हौ लकडिन नाच नचैहौ। ऊॅंच नीच से हाय पसरि हौ मॉंगे भीख न पैहौ॥ ३॥ तेली के घर बैला होहौ ऑंखिन ढॉंपि ढॅंपैहौ। कोस पचास घरै मॉं चलिहौ बाहर होन न पैहौ॥ ४॥ पॅंचवा जनम ऊॅंट का पैहौ बिन तोलन बोझ लदैहौ। बैठे से तो उठन न पैहौ खुरच खुरच मरि जैहौ॥ ५॥ धोबी घर गदहा होहौ कटी घास नहिं पैंहौ। लदी लादि आपु चढि बैठे लै घटे पहुॅंचैंहौ॥ ६॥ पंछिन मॉं तो कौवा होहौ करर करर गुहरैहौ। उडि के जय बैठि मैले थल गहिरे चोंच लगैहौ॥ ७॥ सत्तनाम की हेर न करिहौ मन ही मन पछितैहौ। कहै कबीर सुनो भै साधो नरक नसेनी पैहौ॥ ८॥ ------------------------------------------- केहि समुझावौ केहि समुझावौ सब जग अन्धा॥ टेक॥ इक दु होयॅं उन्हैं समुझावौं सबहि भुलाने पेटके धन्धा। पानी घोड पवन असवरवा ढरकि परै जस ओसक बुन्दा॥ १॥ गहिरी नदी अगम बहै धरवा खेवन- हार के पडिगा फन्दा। घर की वस्तु नजर नहि आवत दियना बारिके ढूॅंढत अन्धा॥ २॥ लागी आगि सबै बन जरिगा बिन गुरुज्ञान भटकिगा बन्दा। कहै कबीर सुनो भाई साधो जाय लिङ्गोटी झारि के बन्दा॥ ३॥
I HOPE IT WILL HELP YOU DEAR
THANKU
शिक्षा : एम० एस० सी० (गणित), एम ए० (हिन्दी), पी-एच डी० कार्यक्षेत्र : डॉ॰ बाल गेविन्द द्विवेदी मूलतः राष्ट्रीय-सांस्कृतिक चेतना के कवि हैं। शिक्षक एवं विज्ञान का अध्येता होने के कारण उनके काव्य में आदर्श एवं सत्य का सुयोग सहज है। डॉ॰ बाल गोविन्द द्विवेदी मंचीय कवि नहीं हैं। वे एक मनीषी कवि हैं जिनकी स्पष्ट जीवन-दृष्टि है। कविता उनके लिए साधना है जिसका साध्य है मनुष्य। इसलिए वे कविता में नारेबाजी और वाहवाही की अपेक्षा न कर साधना-पथ पर निरन्तर चलने में विश्वास करते हैं। अतः उन्हें जनकवि की अपेक्षा जनभावनाओं का कवि कहा जा सकता है। डॉ॰ द्विवेदी की सभी रचनाओं में उनका एकान्त चित्रण प्रस्फुटित हुआ है। कवि की एकान्तिकता केवल चिन्तन के धरातल पर है, अभिव्यक्ति के स्तर पर नहीं। अभिव्यक्ति के स्तर पर कवि के पीछे जन-संमर्द है। डॉ॰ बाल गोविन्द द्विवेदी की कविताएँ उस भीड़ की आवाज हैं, जिसको पता नहीं है कि लोक प्रचलित शैली का उपयोग अपने काव्य में किया तथा गज़ल और गीत को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है।
करम गति टारै करम गति टारै नाहिं टरी॥ टेक॥ मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी सिधि के लगन धरि। सीता हरन मरन दसरथ को बनमें बिपति परी॥ १॥ कहॅं वह फन्द कहॉं वह पारधि कहॅं वह मिरग चरी। कोटि गाय नित पुन्य करत नृग गिरगिट-जोन परि॥ २॥ पाण्डव जिनके आप सारथी तिन पर बिपति परी। कहत कबीर सुनो भै साधो होने होके रही॥ ३॥ ------------------------------------------- रे दिल गाफिल रे दिल गाफिल गफलत मत कर एक दिना जम आवेगा॥ टेक॥ सौदा करने या जग आया पूजी लाया मूल गॅंवाया प्रेमनगर का अन्त न पाया ज्यों आया त्यों जावेगा॥ १॥ सुन मेरे साजन सुन मेरे मीता या जीवन में क्या क्या कीता सिर पाहन का बोझा लीता आगे कौन छुडावेगा॥ २॥ परलि पार तेरा मीता खडिया उस मिलने का ध्यान न धरिया टूटी नाव उपर जा बैठा गाफिल गोता खावेगा॥ ३॥ दास कबीर कहै समुझाई अन्त समय तेरा कौन सहाई चला अकेला संग न को कीया अपना पावेगा॥ ४॥ ------------------------------------------- झीनी झीनी बीनी चदरिया झीनी झीनी बीनी चदरिया॥ टेक॥ काहे कै ताना काहे कै भरनी कौन तार से बीनी चदरिया॥ १॥ इडा पिङ्गला ताना भरनी सुखमन तार से बीनी चदरिया॥ २॥ आठ कँवल दल चरखा डोलै पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया॥ ३॥ साँ को सियत मास दस लागे ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया॥ ४॥ सो चादर सुर नर मुनि ओढी ओढि कै मैली कीनी चदरिया॥ ५॥ दास कबीर जतन करि ओढी ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया॥ ६॥ ------------------------------------------- दिवाने मन दिवाने मन भजन बिना दुख पैहौ ॥ टेक॥ पहिला जनम भूत का पै हौ सात जनम पछिताहौ। कॉंटा पर का पानी पैहौ प्यासन ही मरि जैहौ॥ १॥ दूजा जनम सुवा का पैहौ बाग बसेरा लैहौ। टूटे पंख मॅंडराने अधफड प्रान गॅंवैहौ॥ २॥ बाजीगर के बानर हो हौ लकडिन नाच नचैहौ। ऊॅंच नीच से हाय पसरि हौ मॉंगे भीख न पैहौ॥ ३॥ तेली के घर बैला होहौ ऑंखिन ढॉंपि ढॅंपैहौ। कोस पचास घरै मॉं चलिहौ बाहर होन न पैहौ॥ ४॥ पॅंचवा जनम ऊॅंट का पैहौ बिन तोलन बोझ लदैहौ। बैठे से तो उठन न पैहौ खुरच खुरच मरि जैहौ॥ ५॥ धोबी घर गदहा होहौ कटी घास नहिं पैंहौ। लदी लादि आपु चढि बैठे लै घटे पहुॅंचैंहौ॥ ६॥ पंछिन मॉं तो कौवा होहौ करर करर गुहरैहौ। उडि के जय बैठि मैले थल गहिरे चोंच लगैहौ॥ ७॥ सत्तनाम की हेर न करिहौ मन ही मन पछितैहौ। कहै कबीर सुनो भै साधो नरक नसेनी पैहौ॥ ८॥ ------------------------------------------- केहि समुझावौ केहि समुझावौ सब जग अन्धा॥ टेक॥ इक दु होयॅं उन्हैं समुझावौं सबहि भुलाने पेटके धन्धा। पानी घोड पवन असवरवा ढरकि परै जस ओसक बुन्दा॥ १॥ गहिरी नदी अगम बहै धरवा खेवन- हार के पडिगा फन्दा। घर की वस्तु नजर नहि आवत दियना बारिके ढूॅंढत अन्धा॥ २॥ लागी आगि सबै बन जरिगा बिन गुरुज्ञान भटकिगा बन्दा। कहै कबीर सुनो भाई साधो जाय लिङ्गोटी झारि के बन्दा॥ ३॥
I HOPE IT WILL HELP YOU DEAR
THANKU
Similar questions
Social Sciences,
7 months ago
Computer Science,
7 months ago
Business Studies,
7 months ago
World Languages,
1 year ago
English,
1 year ago
Hindi,
1 year ago