बालक कृष्ण ने माँ यशोदा से क्या शिकायत की?
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जन्म देने वाली को जननी कह सकते हैं, लेकिन मां का संबोधन उसे ही मिलता है, जो बच्चे के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरी तरह निभाती है। अपनी ममता उस पर उड़ेलती है, गलती करने पर उसे दंड देती है और बच्चे के विकास में पूरा योगदान करती है। यशोदा भले ही कृष्ण और बलराम की जननी नहीं थीं, लेकिन उन्होंने स्वयं को मां सिद्ध किया। कथाओं के अनुसार, श्रीकृष्ण को यशोदा ने नहीं, बल्कि देवकी ने कंस की कारागृह में जन्म दिया था। कंस की क्रूरदृष्टि से बचाने के लिए देवकी ने उन्हें यशोदा के यहां भेज दिया। यशोदा को तो जैसे भगवान मिल गए। एक कथा आती है कि यशोदा अपने पिछले जन्म में वसुश्रेष्ठ द्रोण की पत्??नी धरा थीं, जिन्होंने ब्रंा से पृथ्वी पर जन्म लेकर श्रीकृष्ण की सेवा करने का वरदान मांगा था। इस वरदान के फलस्वरूप ही वे यशोदा बनीं और भगवान की सेवा उन्होंने उन्हें पुत्र जानकर की।
महत्वपूर्ण बात यह है कि यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण को अपना पुत्र ही माना, भगवान नहीं। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि प्रत्येक मां अपने पुत्र में भगवान का ही रूप देखती है। यशोदा ने कृष्ण को सभी अच्छे संस्कार देने का पूरा प्रयत्??न किया था। मां से भी बढ़कर। इस तरह उन्होंने अपने कर्तव्यों का पालन किया। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि कोई स्त्री सिर्फ जन्म देकर ही मां नहीं बन सकती, बल्कि उसे अच्छी शिक्षाओं और संस्कार के साथ पालन-पोषण करने वाली स्त्री ही मां कहलाने की हकदार है। जन्म देने वाली मां जननी हो सकती है, लेकिन चुनौतियों से जूझने की शक्ति वही मातृ-शक्ति दे सकती है, जो बच्चे में संस्कार भरे।
यशोदा जी ने बालक कृष्ण के साथ वैसा ही व्यवहार किया, जैसे एक ममतामयी मां करती है। उन्हें प्यार से दुलराया, पालने में झुलाया, ठुमक-ठुमक कर चलते हुए देखकर खुश हुई। इतना ही नहीं, उन्होंने उद्दंडता करने पर पुत्र से स्पष्टीकरण मांगा और दोषी मानकर उन्हें दंड भी दिया।
यशोदा जी का महान चरित्र है। उन्होंने सिर्फ श्रीकृष्ण का ही लालन-पालन नहीं किया, बल्कि रोहिणी के पुत्र बलराम पर भी मां की ममता उड़ेली और उनका भी पालन-पोषण किया।