बोनालु त्यौहार किस तरह मनाया जाय तेलंगाना के मुख्यमंत्री का सन्देश |
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बोनालु उत्सव तेलंगाना के अनेक प्रसिद्ध त्योहारों में एक है। बोनालु हर साल आषाढ़ माह में मनाया जाता है। अब सवाल उठता है कि बोनालु उत्सव को आषाढ़ माह में क्यों मनाया जाता है? क्योंकि आषाढ़ माह में संक्रमण बीमारियां फैलती है। बीमारीका मुख्य कारण मांसाहार है।
मांसाहार के कारण कालरा, प्लेग, चेचक, टीबी जैसी अनेक बीमारियां फैलती है। वैसे तो अधिकतर तेलंगाना के लोगों का प्रिय आहार मांसाहार होता है। संक्रमण बीमारियों की प्रकोप से बचने के लिए तेलंगाना के ग्रामीण लोग माता से गुहार लगाते है। सभी को सुख शांति बहाल करने के लिए माता को बोनालु अर्पित करते है।
बोनालु ले जाती महिलाएं
बोनालु में हल्दी का पानी, नीम के पत्ते और एक नये मटके में बोनम ले जाकर माता की मंदिर की प्रदक्षणा करते हैं। बोनम का अर्थ है ग्रामीण रूप ही बोनम है। बोनालु के समय बकरी और मुर्गी की भी बलि देते है। तेलंगाना यह बात भी प्रचलित है कि बोनालु बाद गांवों में एक माह तक मांसाहार खाना बंद कर देते है।
महांकाली मंदिर
माता के अनेक नाम
तेलंगाना में मुख्य रूप से हैदराबाद में माता को पेद्दम्मा, पोचम्मा, मैसम्मा, गंडिमैसम्मा, नल्लापोचम्मा, एल्लम्मा, पोलेरम्मा, महांकालम्मा आदि नामों से जाना जाता है। लोग माता से प्रार्थना करते है कि संक्रमण बीमारियों से उनके परिवार और गांव को बचाये। साथ ही अच्छी फसल, हर घर में खुशहाली के लिए भी प्रार्थना करते है।
गोलकोंडा में भक्तों की भीड़
शोभा यात्रा
बोनालु को अर्पित करने के दौरान बड़ी शोभायात्रा निकाली जाती है। इस शोभा यात्रा में पोतराजू की एक अलग पहचान होती है। तेलंगाना ही नहीं देश के अनेक भागों में बोनालु मनाया जाता है, मगर उनके नाम और पद्धति अलग होती है।
भक्त
गोलकोंडा में आयोजित बोनालु उत्सव में 1.5 लाख भक्तों ने बोनालु अर्पित किया है। आगामी 22 जुलाई को महांकाली मंदिर में आयोजित बोनालू में 3 लाख भक्त बोनालु अर्पित करने का अनुमान है। सरकार ने भक्तों की बढ़ती संख्या को देखते हुए व्यापक व्यवस्था की है।
गोलकोंडा मंदिर
बोनालु का समापन
हैदराबाद में सबसे पहले गोलकोंडा के श्री जगदंबिका मंदिर में बोनालु अर्पित किया जाता है। इसके बाद सिकंदराबाद के उज्जैनी महांकाली मंदिर में और इसके पश्चात लाल दरवाजा के माता के मंदिर में बोनालु अर्पित किया जाता है। इसके बाद ही अन्य जगहों पर बोनालु अर्पित किया जाता है। अंतिम बोनालु भी गोलकोंडा के जगदंबिका मंदिर को अर्पित करने के बाद बोनालु उत्सव समाप्त हो जाता है।
बलकमपेट मंदिर में बोनम अर्पित करती हुए मुख्यमंत्री केसीआर की पत्नी शोभा
बोनालु भगवान से मिलाने का मार्ग
पंडितों का कहना है कि बोनालु को जीवात्मा से भगवान को मिलाने का एक मार्ग है। वैज्ञानिक की नजर से देखा जाएं तो नीम के पत्ते और हल्दी जब जमीन और आसमान में मिलते है तो सुक्ष्मजीव मर जाते है। साथ ही मौसम में कीटनाशक को मिटाने का काम करता है। इससे अधिक महत्वपूर्ण है कि बोनालु उत्सव सभी लोगों में भाईचारा और एक मंच पर ले आने का संदेश देती है।
गृहमंत्री नायनी नरसिम्हा रेड्डी
तेलंगाना सरकार
तेलंगाना गठन के बाद से तो बोनालु उत्सव में चार चांद लग गये हैं। पिछले साल तेलंगाना सरकार ने बोनालु उत्सव के लिए दस करोड़ रुपये जारी किये थे। इस साल इसे बढ़ाकर 15 करोड़ रुपये जारी किया है। सरकार ने 20 जुलाई तक मंदिर के प्रमुखों से आवेदन करने का समय दिया है। ताकि मंदिरों में बोनालु उत्सव भव्य रूप से मनाया जाएं।
रंगम अर्थात भविष्यवाणी
बोनालु के अगले दिन रंगम होता है। इस रंगम यानी भविष्यवाणी की ओर भक्त की ही नहीं सरकार की भी नजर होती है। क्योंकि रंगम के दौरान जो भविष्यवाणी की जाती है तो वो लोगों को आने वाले संकटों के प्रति आगाह और चेतावनी होती है। कहा जाता है कि अनेक बार रंगम की भविष्यवाणी सच साबित हुई है। इसके अच्छे और बुरे परिणाम देखने को मिले हैं।