'बिना संघर्ष अपंग जीतना'अपने
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संघर्ष ही जीवन है। जीवन संघर्ष का ही दूसरा नाम है। इस सृष्टि में छोटे-से-छोटे प्राणी से लेकर बड़े-से-बड़े प्राणी तक, सभी किसी-न-किसी रूप में संघर्ष करते है। जिसने संघर्ष करना छोड़ दिया, वह मृतप्राय हो गया। जीवन में संघर्ष है प्रकृति के साथ, स्वयं के साथ, परिस्थितियों के साथ।तरह-तरह के संघर्षों का सामना आए दिन हम सबको करना पड़ता है और इनसे जूझना होता है। जो इन संघर्षों का सामना करने से कतराते हैं, वे जीवन से भी हार जाते हैं, जीवन भी उनका साथ नहीं देता।
जिस तरह लोहा को यूँ ही छोड़ दिया जाए तो उसमे जंग लग जाती है और यह जंग उसे नष्ट करती रहती है, उसी तरह संघर्षहीन जीवन भी जंग लगे लोहे के समान हो जाता है। अगर उस जंग को हटा दिया जाए और नियमित रूप से उसे प्रयोग में लाया जाए तो फिर लोहे में जंग नहीं लगती, इसलिए मशीनों में अक्सर तेल डाला जाता है, उन्हें चलाया जाता है।जितना मशीन के पुरजे चलते रहते हैं, मशीन अच्छे से कार्य करती रहती है और अगर किसी मशीन को बंद करके लंबे समय के लिए यूँ ही रख दिया जाता है तो उसके पुरजे जाम हो जाते हैं, चलने में आवाज करते हैं और आसानी से न चलकर जोर लगाने से चलते हैं।
ठीक इसी तरह संघर्षहीन जीवन जड़ता लता है, अपंगता लता है, जबकि संघर्षपूर्ण जीवन हमारे व्यक्तित्व को प्रकाशित करता है, उसमें पैनापन लता है, जिससे हमें सफलता का शिखर प्राप्त होता है।सफलता व कामयाबी की चाहत तो सभी करते हैं, लेकिन उस सफलता को पाने के लिए किए जाने वाले संघर्षों से कतराते हैं।मिलने वाली सफलता सबको आकर्षित भी करती है, लेकिन उस सफलता की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले संघर्ष को कोई नहीं देखता, न ही उसकी और आकर्षित होता है। जबकि सफलता तक पहुँचने की वास्तविक कड़ी वह संघर्ष ही है।
हम जिन व्यक्तियों को सफलता की ऊँचाइयों पर देखते हैं, उन्हें उस ऊंचाई तक पहुँचने के लिए उन्होंने जो संघर्षमय जीवन जिया होता है, वही जीवन का सार होता है।बिना संघर्ष, अपंग है जीवन – Life Without Struggle
जीवन में आसानी से मिलने वाली सफलता से उत्पन्न सुख वास्तव में व्यक्ति को उतना सुखी व प्रसन्न नहीं करता, जितना कठिन संघर्षों के बाद मिले वाली सफलता करती है। वही जीवन सार्थक है, जो भरे-पूरे संघर्ष का प्रतिफल हो।
गौतम बुद्ध ने दुख के निवारण के लिए वर्षों तप किया, संघर्ष किया और इसके बाद यह सूत्र दिया कि ” सुख को स्थायी मानना ही दुख का सबसे बड़ा कारण है। ” वे सुख के बारे में भी कहा करते थे कि ” संघर्ष के बाद उपजी अनुभूति सुख है, जीवन में जितना ज्यादा संघर्ष किया जाता है, उससे सुख भी उतना ही ज्यादा होता है। “जब संघर्षों की बात की जा रही है तो फिर एवरेस्ट (Everest) पर चढ़ते समय आने वाले संघर्षों की बात क्यों न की जाए? एवरेस्ट की चढ़ाई अत्यंत कठिन चढ़ाई होती है। जरा भी आसान नहीं होता इसका सफर।
हर पल यहाँ मौत से सामना होता है। इस कठिन चढ़ाई पर सफलता पाने का गौरव हासिल करने वाली पहली महिला जुंको ताबेई (Junko Tabei) का कहना है – “दुनिया के विभिन्न मंचों पर सम्मानित होना अच्छा लगता है, लेकिन यह अच्छा लगना उस अच्छा लगने की तुलना में बहुत कम है, जिसकी अनुभूति मुझे एवरेस्ट पर कदम रखने के समय हुई थी, जबकि वहां तालियाँ बजाने वाला कोई नहीं था। उस समय हाड़ कंपकंपाती बरफीली हवा, कदम-कदम पर मौत की आहट, लड़खड़ाते कदम और फूलती सांसों से संघर्ष के बाद जब मैं एवरेस्ट पहुँची तो यही लगा कि मैं दुनिया की सबसे खुश इंसान हूँ। ”वास्तव में जब व्यक्ति अपने संघर्षों से दोस्ती कर लेता है, प्रसन्नता के साथ उन्हें अपनाता है, उत्साह के साथ चलता है तो संघर्ष का सफर उसका साथ देता है और उसे कठिन-से-कठिन डगर को पार करने में मदद करता है।
लेकिन यदि व्यक्ति जबरन इसे अपनाता है, बेरुखी के साथ इस मार्ग पर आगे बढ़ता है, तो वह भी ज्यादा दूर तक नहीं चल पाता, बड़ी कठिनाई के साथ ही वह थोड़ा-बहुत आगे बढ़ पाता है। जब जीवन में एवरेस्ट जैसी मंजिल हो और उस तक पहुँचने के लिए कठिन संघर्षों का रास्ता हो, तो घबराने से बात नहीं बनती, संघर्षों को अपनाने से ही मंजिल मिल पाती है।