Hindi, asked by queen200813, 8 months ago

ब्राह्मण और उसकी पत्नी के शोक का क्या कारण था ? ​

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Answered by priyanshumishra20875
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Answer:

किसी ब्राह्मण को बड़े कष्ट से एक पुत्र प्राप्‍त हुआ था। वह बड़े-बड़े़ नेत्रोंवाला सुन्‍दर बालक बाल-ग्रह से पीड़ित हो बाल्‍यावस्‍था में ही चल बसा। जिसने युवावस्‍था में अभी प्रवेश ही नहीं किया था तथा जो अपने कुल का सर्वस्‍व था, उस मरे हुए बालक को लेकर उसके कुछ दुखी बान्‍धव शोक से व्याकुल हो फूट-फूटकर रोने लगे। उस मृत बालक को गोद में लेकर वे श्‍मशान की ओर चले। वहाँ पहुँचकर खड़े हो गये और अत्‍यंत दुखी होकर रोने लगे। वे उसकी पहले की बातों को बारंबार याद करके शोकमग्‍न हो जाते थे; इसलिये उसे श्‍मशान भूमि में डालकर लौट जाने में असमर्थ हो रहे थे। उनके रोने के शब्‍द से आकृष्ट होकर एक गीध वहाँ आया और इस प्रकार कहने लगा- ‘मनुष्‍यों! इस जगत में अपने इस इकलौते पुत्र को यहाँ छोड़कर लौट जाओ, देर मत करो। यहाँ हजारों स्त्री-पुरुष काल के द्वारा लाये जा चुके हैं और उन सबको उनके भाई-बन्‍धु छोड़कर चले जाते हैं। ‘देखों, यह सम्‍पूर्ण जगत ही सुख और दु:ख से व्‍याप्‍त है, यहाँ सबको बारी-बारी से संयोग और वियोग प्राप्‍त होते रहते हैं। ‘जो लोग अपने मृतक सम्‍बन्धियों को लेकर श्‍मशान में जाते हैं, और जो नहीं जाते हैं, वे सभी जीव-जन्‍तु अपनी आयु पूरी होने पर इस संसार से चल बसते हैं। ‘गीधों और गीदड़ों से भरे हुए इस भयंकर श्‍मशान में सब ओर असंख्‍य नरकंकाल पड़े है। यह स्‍थान सभी प्राणियों के लिये भयदायक है। यहाँ तुम्‍हें नहीं ठहरना चाहिये; ठहरने से कोई लाभ भी नहीं है। ‘अपना प्रिय हो या’ द्वेषपात्र। कोई भी कालधर्म में (मुत्‍यु) को पाकर कभी पुन: जीवित नहीं हुआ है। समस्‍त प्राणियों की ऐसी ही गति है। ‘जिसने इस मर्त्‍यलोक में जन्‍म लिया है, उसे एक-न-एक दिन अवश्‍य मरना होगा। काल द्वारा निर्मित पथ पर मरकर गये हुए प्राणी को कौन जीवित कर सकेगा। ‘सूर्य अस्‍ताचल को जा रहे हैं, जगत के सब लोग दैनिक कार्य समाप्‍त करके अब उससे विरत हो रहे हैं। तुम लोग भी अब अपने पुत्र का स्‍नेह छोड़कर घर लौट जाओं। नरेश्‍वर! तब गीध की बात सुनकर वे बन्‍धु-बान्‍धव जोर-जोर से रोते हुए अपने पुत्र को भूतल पर छोड़कर घर की ओर लौटने लगे। वे इध-उधर रो-गाकर इसी निश्‍चय पर पहुँचे कि अब तो यह बालक मर ही गया; अत: उसके दर्शन से निराश हो वहाँ से जाने के लिये तैयार हो गये। जब उन्‍हें यह निश्चित हो गया कि अब यह नहीं जी सकेगा, तो उसके जीवन से निराश हो वे सब लोग अपने बच्‍चे को छोड़कर जाने के लिये रास्‍ते पर आकर खडे़ हुए।[1] गीदड़ का संवाद इतने ही में कौएँ की पाँख के समान काले रंग का एक गीदड़ अपनी मांद (घूरी) से निकलकर उन लौटते हुए बान्‍धवों से कहा- ‘मनुष्‍यों! तुम बड़े निर्दय हो! ‘अरे मूर्खो! अभी तो सूर्यास्‍त भी नहीं हुआ है; अत: डरो मत। बच्‍चे को लाड़-प्‍यार कर लो। अनेक प्रकार का मुहूर्त आता रहता है। सम्‍भव है किसी शुभ घड़ी में यह बालक जी उठे। ‘तुम लोग कैसे निर्दयी हो? पुत्रस्‍नेह का त्‍याग करके इस नन्‍हे से बालक को श्‍मशान-भूमि में लाकर ड़ाल दिया। अरे! अपने बेटे को इस मरघट में छोड़कर क्‍यों जा रहे हो? ‘जान पड़ता है’ इस मधुर भाषी छोटे-से बालक पर तुम्‍हारा तनिक भी स्‍नेह नहीं है। यह वही बालक है, जिसकी मीठी-मीठी बातें सुनते ही तुम्‍हारा हृदय हर्ष से खिल उठता था। ‘पशु और पक्षियों का भी अपने बच्‍चे पर जैसा स्‍नेह होता है, उसे तुम देखो। यद्यपि स्‍नेह में आसक्‍त उन पशु-पक्षी-कीट आदि प्राणियों को अपने बच्‍चों के पालन-पोषण करने पर भी परलोक में उनसे उस प्रकार कोई फल नहीं मिलता जैसे कि परलोक की गति में स्थित हुए मुनियों को यज्ञादि क्रिया से मिलता है। ‘क्‍योंकि उनके पुत्रों में स्‍नेह रखने वाले पशु आदि के लिये इहलोक और परलोक में संतानों के लालन-पालन से कोई लाभ नहीं दिखायी देता तो भी वे अपने-अपने बच्‍चों की रक्षा करते रहते हैं। यद्यपि उनके बच्‍चे बड़े हो जाने पर अपने मां-बाप का पालन-पोषण नहीं करते हैं तो भी अपने प्‍यारे बच्‍चों को न देखने पर उनका शोक काबू में नहीं रहता। ‘परंतु मनुष्‍यों में इतना स्‍नेह ही कहाँ है, जो उन्‍हें अपने बच्‍चों के लिये शोक होगा। अरे! यह तुम्‍हारा वंशधर बालक है। इसे छोड़कर तुम कहाँ जाओगे। ‘इस अपने लाड़ले के लिये देर तक आँसू बहाओ और दीर्घ काल तक स्‍नेह भरी दृष्टि से इसकी ओर देखो, क्‍योंकि ऐसी प्‍यारी-प्‍यारी संतानों को छोड़कर जाना अत्‍यंत कठिन है। ‘जो शरीर से क्षीण हुआ हो, जिस पर कोई आर्थिक अभियोग लगाया गया हो तथा जो श्‍मशान की ओर जा रहा हो, ऐस अवसरों पर उसके भाई-बन्‍धु ही उसके साथ खड़े होते हैं। दूसरा कोई वहाँ साथ नहीं देता। ‘सबको अपने-अपने प्राण प्‍यारे होते हैं और सभी दूसरों से स्‍नेह पाते हैं। पशु-पक्षी की योनि में भी जो प्राणी रहते हैं, उनका अपनी संतानों पर कैसा प्रेम है, इसे देखों। इस बालक की कमल-जैसी चंचल एवं विशाल आँखें कितनी सुदंर हैं। इसका शरीर स्‍नान एवं पुष्‍पमाला आदि से विभूषित नया-नया विवाह करके आये दुल्‍हे जैसा है। ऐसे मनोहर बालक को छोड़कर जाने के लिये तुम्‍हारे पैर कैसे उठ रहे हैं?

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