बोरत तो बोयो पे निचोरत बनै नहीं इस पंक्ति में गोापिका के मन मे कौन क्या भाव रस व्यक्त हुआ है
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follow me.............
deepsagar131:
rakha hai
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कवि के अनुसार गोकुल क्षेत्र के ग्वालों के सभी गांवों की गली-गली में होली का उल्लास इस तरह से छाया हुआ है कि वहां के हाल के बारे में कुछ भी कहते नहीं बनता। कवि का तात्पर्य यह है कि वहां हर ओर होली की मस्ती छाई हुई है। कवि पद्माकर कहते है कि लोग अपने आस-पड़ोस, पिछवाड़े और द्वार-द्वार तक दौड़ लगते हुए होली खेल रहे है। वे किसी के गुण-अवगुण का भी ध्यान नहीं रखते। कवि होली का वर्णन करते हुए आगे कहता है कि कोई चंचल और चतुर सखी अपनी सखी से कहती है कि वह रंग में भीगे हुए अपने कपड़े को अच्छी तरह से निचोड़ने का प्रयास करती है, लेकिन उसमें निचोड़ते नहीं बनता क्योंकि उसका मन वश में नहीं रहा।
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