| बैठि रही अति सघन बन, पैठि सदन-तन माँह।
| देखि दुपहरी जेठ की छाँहौं चाहति छाँह।।।
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जेठ की दुपहरी में सूर्य ठीक सिर के ऊपर (मध्य आकाश में) रहता है। अतः सब चीजों की छाया अत्यन्त छोटी होती है। पेड़ की छाया ठीक उसकी डालियों के नीचे रहती है। घर की छाया घर में ही घुसी रहती है-दीवार से नीचे नहीं उतरती। शरीर की छाया भी नहीं दीख पड़ती-परछाई पैरों के नीचे जाती है, मानों वह भी शरीर में ही घुस गई हो। वाह वा! इस दोहे से बिहारी के प्रकृति-निरीक्षण-नैपुण्य का कैसा उत्कृष्ट परिचय मिलता है!
Explanation:
सघन = घना। सदन = घर। तन = शरीर। छाँहौं = छाया भी।
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बैठि रही अति सघन बन, पैठि सदन तन माँह। देखि दुपहरी जेठ की छाँहौं चाहति छाँह॥ इस दोहे में कवि ने जेठ महीने की गर्मी का चित्रण किया है। कवि का कहना है कि जेठ की गरमी इतनी तेज होती है की छाया भी छाँह ढ़ूँढ़ने लगती है।
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