बुददी और भाग्य अपनी शक्ति का प्रडा र सन कर क्या सिद्धिद करना चाहते थे
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बुद्धि और भाग्य
एक बार बुद्धि और भाग्य में झगड़ा हुआ। बुद्धि ने कहा, मेरी शक्ति अधिक है। मैं जिसे चाहूँ सुखी कर दूँ। मेरे बिना कोई बड़ा नहीं हो सकता।'' भाग्य ने कहा, मेरी शक्ति अधिक है। मैं तेरे बिना काम कर सकता हूँ। तू मेरे बिना काम नहीं कर सकती।'' इस तरह दोनों ने अपनी-अपनी तरफ की दलीलें जोर-शोर से दीं।
जब झगड़ा दलीलों से समाप्त न हुआ तो बुद्धि ने भाग्य से कहा कि यदि तुम उस गड़रिए को जो जंगल में भेड़ें चरा रहा है, मेरी सहायता के बिना राजा बना दो तो समझूँ कि तुम बड़े हो। यह सुनकर भाग्य ने उसके राजा बनाने का यत्न करना आरंभ कर दिया। उसने एक बहुत कीमती खड़ाऊँ की जोड़ी, जिसमें लाखों रुपए के नग लगे थे, लाकर गड़रिए के सामने रख दी। गड़रिया उनको पहनकर चलने फिरने लगा। फिर भाग्य ने एक व्यापारी को वहाँ पहुँचा दिया।
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