बुद्ध की मूर्तियां कहां बनाई गई थी
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मथुरा। देश-विदेश में भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली के तौर पर पहचान रखने वाला मथुरा आदि काल से मूर्तिकला एवं विभिन्न धर्माचार्यों की तपस्थली के रूप में अहम स्थान रखता है। मथुरा में विभिन्न धर्मों से सम्बन्धित हजारों मूर्तियां बनाई गई हैं। विद्वानों का कहना है कि भगवान गौतम बुद्ध की पहली मूर्ति का निर्माण भी मथुरा में ही हुआ था। दरअसल पहले प्रतिमा निर्माण के लिए केवल दो मूर्ति कला ही प्रचलन में थीं। पहली मथुरा मूर्ति कला और दूसरी गांधार मूर्तिकला। बुद्ध के जीवन से जुड़ी मूर्तियां सबसे पहले इन्हीं दो शैलियों में बनीं। मथुरा मूर्तिकला की प्रतिमाएं गांधार कला शैली की मूर्तियों से पहले ही मिलना शुरू हो गई थीं। दुनिया की पहली बुद्ध मूर्ति खुदाई के दौरान मथुरा से ही मिली थी जो मथुरा मूर्तिकला शैली से निर्मित थी। इससे प्रमाणित होता है कि मथुरा के ही शिल्पकार ने चित्तीदार लाल बलुए पत्थर पर विश्व की पहली बुद्ध मूर्ति बनाई थी। यह मूर्ति कटरा केशव देव मंदिर से सन् 1860 में मिली।
संग्रहालय में संग्रहित हैं लाल बलुआ मिट्टी की तमाम मूर्तियां
बौद्ध, शैव व जैन धर्मावलम्बियों की पूजास्थली व साधनास्थली रही मथुरा में चित्तीदार लाल बलुआ पत्थर से बनीं विभिन्न धर्माें की मूर्तियां आज भी राजकीय संग्रहालय में संग्रहित हैं जो देश-विदेश से आने वाले पुरातत्व इतिहास एवं शोध कर्ताओं के लिए बहुमूल्य एवं उपयोगी सिद्ध हो रही हैं। संग्रहालय में कुषाण एवं गुप्तकालीन मथुरा शैली की कलाकृतियां तो हैं ही, इसके अलावा मूर्ति, सिक्के, लघुचित्र, धातुमूर्ति, काष्ठ एवं स्थानीय कला के अनेक दुर्लभ कलारत्न पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र हैं। संग्रहालय में शुंगकालीन मातृ देवी, कामदेव फलक, गुप्तकालीन नारी व विदूषक, कुषाण कालीन धातु मूर्तियों में कार्तिकेय, देव युगल प्रतिमा व नाग मूर्ति आदि मौजूद हैं। स्थानीय कला में मंदिरों की पिछवाइयां, सांझी के चित्र आदि संग्रहालय की अमूल्य धरोहर हैं।
मथुरा के शिल्पकार ने बनाई थी भगवान बुद्ध की पहली मूर्ति
कान्हा की नगरी में बौद्ध संस्कृति का खूब विस्तार हुआ है। यहां भगवान बुद्ध की प्रतिमाओं को लाल बलुए पत्थर पर मूर्ति का रूप दिया गया। इतना ही नहीं बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने मथुरा में शिक्षा ग्रहण की थी। संग्रहालय के पूर्व विथिका सहायक शत्रुघ्न शर्मा के अनुसार सबसे पहले प्रतिमा निर्माण के लिए केवल दो मूर्ति कला ही प्रचलन में थीं। पहली मथुरा मूर्ति कला और दूसरी गांधार मूर्तिकला। बुद्ध के जीवन से जुड़ी मूर्तियां भी सबसे पहले इन्हीं दो शैलियों में बनीं। भगवान बुद्ध की पहली मूर्ति मथुरा मूर्तिकला शैली में चित्तीदार लाल बलुए पत्थर पर बनाई गई थी। कुषाण कालीन इस मूर्ति में भगवान बुद्ध अभय मुद्रा में बैठे हैं। उनके पीछे पीपल वृक्ष अलंकृत है और दोनों ओर उनके अनुचक खड़े हुए हैं। सिर के ऊपर दोनों ओर दो गंधर्व दिखाए गए हैं जो पुष्प वर्षा कर रहे हैं। यह मूर्ति करीब ढाई फीट ऊंची और डेढ़ फीट चौड़ी है और 2000 वर्ष पुरानी बताई जाती है।
अंग्रेज कलेक्टर ने की थी संग्रहालय की स्थापना
वर्ष 1874 में तत्कालीन अंग्रेज कलेक्टर एफ.एस ग्राउज ने खुदाई के दौरान मथुरा में मिली तमाम ऐतिहासिक मूर्तियों व अन्य कलाकृतियों में अपनी दिलचस्पी दिखाते हुए इन्हें बाहर भेजने के बजाए सहेजने की इच्छा जताई। उन्होंने कचहरी के पास स्थित जमालपुर टीले पर बने विश्राम गृह में संग्रहालय की स्थापना की थी। बताया जाता है कि अंग्रेज कलेक्टर को प्राचीन विद्या से बेहद लगाव था। 1853 में शुरू हुई खुदाई के दौरान मथुरा में मिलने वाली कलाकृतियों एवं ऐतिहासिक धरोहर को मथुरा में सहजने की व्यवस्था नहीं थी इसलिए इलाहाबाद, आगरा, लखनऊ और कलकत्ता भेज दिया जाता था। लेकिन बाद में मथुरा में ही संग्रहालय की व्यवस्था होने पर खुदाई में निकलने वाली ऐतिहासिक धरोहरों को यहां से बाहर भेजना बंद कर दिया गया। 1933 तक की कलाकृतियों और एतिहासिक धरोहरों को संग्रहालय में सहेजकर रखा गया है। शहर के बीचों बीच डेम्पियर नगर स्थित नवीन भवन में 1933 में संग्रहालय को शिफ्ट कर दिया गया।
राष्ट्रपति भवन की शोभा बढ़ा रही है मथुरा की मूर्ति
मथुरा कला शैली में लाल बलुए पत्थर पर बनी मूर्तियां देश ही नहीं विदेश में भी अपनी ख्याति के लिए मशहूर हैं। भगवान बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं में तमाम मूर्तियां यहां खुदाई के दौरान मथुरा के भूतेश्वर टीला, कंकाली, कटरा केशव देव मंदिर, चामुंडा टीला, गोवर्धन, कचहरी, सौंख आदि जगहों की खुदाई के दौरान मिली थी जो संग्रहालय की शोभा बढ़ा रही हैं।कचहरी के समीप से खुदाई में मिली भगवान बुद्ध की खड़ी व करीब आठ फीट ऊंची मूर्ति, जो पांचवीं शताब्दी की गुप्तकाल की सबसे सुंदर बुद्ध प्रतिमा मानी जाती है, उसको राष्ट्रपति भवन भेज दिया गया। यह मूर्ति राष्ट्रपति भवन के अशोक हाॅल को सुशोभित कर रही है। इस मूर्ति की सुंदरता को देखकर ही इसे राष्ट्रपति भवन ले जाया गया था। वहीं इसी तरह की एक और मूर्ति संग्रहालय में स्थित है।
विश्व में ख्याति फ़ैल रही गुप्तकालीन और कुषाण समय की प्रतिमाएं
सहायक निदेशक राजकीय संग्रहालय मथुरा डाॅ. एस.पी सिंह ने कुषाण और गुप्तकालीन मूर्तियों की जानकारी देते हुए बताया कनिश्क के समय हुई चैथी बौद्ध संगीत समारोह के बाद महायान के तहत पहली बुद्ध प्रतिमा मथुरा कला शैली में बनी। इसके बाद मूर्तिकला का आंदोलन शुरू हुआ जिसके तहत बुद्ध की तमाम मूर्तियां बनीं। पहली बुद्ध प्रतिमा मथुरा स्थित केशव कटरा देव से खुदाई के दौरान प्राप्त हुई। उनका ये भी कहना है कि कुषाण और गुप्तकालीन की जो प्रतिमाए हैं, वो सिर्फ देश में नहीं बल्कि पूरे विश्व में अपनी ख्याति फैला रही हैं।
युनेस्को विश्व धरोहर स्थल
बामियान के बुद्ध
विश्व धरोहर सूची में अंकित नाम
अलेक्जेंडर बर्नस द्वारा १८३२ में बना बामियान के बुद्ध का चित्रण।
मार्च २००१ में अफ़ग़ानिस्तान के जिहादी संगठन तालिबान के नेता मुल्ला मोहम्मद उमर के कहने पर डाइनेमाइट से उडा दिया गया। कुछ हफ्तों में संयुक्त राज्य अमेरिका के दौरेपर अफगानिस्तान के इस्लामिक अमीरात के दूत सईद रहमतुल्लाह हाशमी ने बताया कि उन्होने विशेष रूप से मूर्तियोंके रखरखाव के लिए आरक्षित अंतर्राष्ट्रीय सहायता का विरोध किया था जबकि अफ़ग़ानिस्तान अकाल का सामना कर रहा था।[2]