• 'बुढ़ापा बहुधा बचपन का पुनरागमन होता है' इस विषय पर अपना विचार व्यक्त कीजिए।
Answers
Answer:
TRENDINGEDITOR’S PICK’SFOR YOUVIDEOSLANGUAGES
बुढ़ापा, बचपन का पुन:आगमन
19 Jan 2019
Anuradha
Blogger
आज किट्टू के दादाजी फिर से ज़िद कर रहे थे कि मिठाई खानी है। किट्टू के मम्मी-पापा और दादी समझा-समझा के थक गए कि डॉक्टर ने मीठा खाने से बिल्कुल मना किया है पर दादाजी तो बस, बच्चों की तरह कर रहे थे। वो कह रहे थे, मैं अंदर पॉटी नहीं करूँगा, आपको बता दूंगा, मुझे मिठाई दे दो, और कुछ नही तो आइसक्रीम ही दे दो।घरवाले उनकी मनोस्थिति अच्छे से समझते थे पर क्या करें, एक तो बुढ़ापा, ऊपर से इतनी बीमारियों ने घेर रखा है, जानबूझ कर कैसे फिर से बीमार होने दें। पर किट्टू की दादी ने चुपके से मिठाई दे ही दी और मुझे कहा कि किसी को मत बताना। ये सब देखकर मुझे मेरे दादाजी की याद आ गई। बचपन में एक कहानी पढ़ी थी बूढ़ी काकी, प्रेमचन्द जी की जिसमें एक पंक्ति थी," बुढ़ापा बहुधा बचपन का पुनरागमन होता है" । उस समय ये बात इतनी समझ में नही आई जितनी अब आ रही है। जब मेरे दादाजी को देखती थी कि अपने अंतिम कुछ सालों में वो बिल्कुल बच्चे जैसे हो गए थे।जैसे बच्चों का ज्यादा ध्यान रखना पड़ता है वैसे ही दादाजी का रखना पड़ता। वो कभी भी कुछ भी खाने की जिद कर लेते। जो चीज़ डॉक्टर ने मना की हो वो तो उनको विशेष रूप से खानी होती। हमारे कहने पर नहीं मानते पर कोई और आकर कहे तो वो बात मान लेते बिल्कुल वैसे जैसे बच्चे करते हैं।जिस तरह बच्चों को अकेला नही छोड़ सकते ,उनको बातों की आदत हो जाती है ,अगर उनसे बात न करो ध्यान न दो तो वो रोने लग जाते हैं ,ठीक उसी तरह दादाजी से भी कोई बात न करता या उनकी बात कोई न सुनता तो वे चिल्लाने लग जाते ,तालियां बजाने लग जाते थे।अगर उनको बोल दे कही जाना है या कोई घर मे आएगा तो इतने खुश होते के नए कपड़े पहनने को मिलेंगे।दादाजी ज़िद्दी भी पूरे थे, उनको नहाना, तैयार करना एक मुश्किल काम होता था। कभी शेव नहीं कराते थे कभी बाल नहीं कटवाते। कभी-कभी तो उनको डांटना पड़ता और फिर सबका मन खराब हो जाता कि क्यों डांटा।कभी-कभी तो भूल ही जाते लोगों को जैसे बच्चे करते हैं। खाना जिस के हाथ से खाना है उसी के हाथ से खाते। जिस तरह बच्चों से झूठ बोलकर ,बहला फुसला कर दवा देते हैं ,दादाजी को भी बिल्कुल वैसे ही दवा देते थे। गुस्सा भी जल्दी होते और मान भी जाते थे।उनके भी हम डायपर बांधते थे। दादाजी 3 साल बिस्तर पर रहे, उनका सब कुछ वहीं होता था लेकिन हमारे घर मे कभी किसी ने उनकी सेवा करने के लिए मना नही किया। जो भी होता उनका काम कर देता। सब के सब तैयार रहते उनके लिए। उनको कभी अकेला नही छोड़ा हमने।जिस तरह बच्चा घर में न हो तो रौनक नहीं लगती उसी तरह बुजुर्ग न हो तो घर खाली से लगता हैं। 3 साल बाद वो सोते ही रह गए।आज वो हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन एक दिन ऐसा नही जाता कि उनकी याद न आई हो। इतने प्यारे थे , जब वो ठीक थे तब हम सबपर जान लुटाते और हमने भी उनकी बीमारी में सब कुछ किया जो कर सकते थे पर ये हमारा फ़र्ज़ था, जितना उन्होंने हमारे लिए किया हम उसका 10 प्रतिशत भी न कर सके।आजकल कुछ लोगों को तो बूढों की बीमारी ही बोझ लगने लगती है तो कुछ लोगों को स्वस्थ बूढ़े भी नहीं पसंद। बीमार लोगों की सेवा करने से बचने का बहाना है या क्या पता नहीं पर थोड़ा सा बीमार होते ही लोग सोचते हैं ,भुगते नहीं,उठा ले भगवान। कई लोगों की हालत तो ऐसी है कि बेटे-बहू ध्यान ही नहीं देते, वृद्धाश्रम में छोड़ आते हैं।इस दुनिया में सबका अंत निश्चित है और सब अपनी निश्चित उम्र लेकर आते हैं, तो क्यूं ऐसा सोचें कि उठा ले वो भी सिर्फ बुढ़ापे की सामान्य बीमारियों में। जिस समय उनको सिर्फ हमारा साथ और प्यार के दो मीठे बोल चाहिए उस समय हम उनसे पीछा छुड़ाने का सोचे तो कितना दुखी करते हैं उन्हें हम। अगर ऐसी कोई बीमारी हो जो दर्दनाक हो तब तो फिर भी हम सोच ले के इनको दर्द मत दो। इस धरती पर स्वर्ग है तो माता-पिता और उनके माता-पिता के चरणों में और उनकी सेवा करने में है। जितनी दुया, आशीर्वाद वो देते हैं उससे बढ़कर कुछ भी नहीं है।भाग्यशाली होते हैं वो लोग जिन्हें दादा-दादी नाना-नानी का प्यार मिलता है और जिन्हें उनकी सेवा करने का मौका मिलता है।जिनके घर भी बुजुर्ग हैं उन्हें सम्मान और प्यार चाहिए, आप उन्हें दवा-पानी देकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते उनके साथ बैठो, प्यार से बात करो चाहे वो डांटे, गुस्सा करें पर इसमें ही उनका प्यार छुपा होता है क्योंकि याद रखें एक दिन सबको बूढ़ा होना है। अपने व्यस्त जीवन से थोड़ा सा समय उनके लिए भी निकालें।धन्यवाद।☺☺ आपको मेरा आर्टिकल कैसा लगा, मुझे अपनी प्रतिक्रिया जरूर दीजिये। आप मुझे फॉलो भी कर सकते हैं।
Explanation:
बुढ़ापा बहुत बचपन का पुनरागमन होता है इस विषय पर अपना छोटा सा सो मत लिखिए