बुढ़ापा तृष्णा रोग का अंतिम समय है' इस विषय पर अपना विचार लिखिए।
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बुढ़ापा तृष्णा रोग का अंतिम समय है| इस विषय में मेरे विचार इस प्रकार है,
बुढ़ापा तृष्णा-रोग का अंतिम समय है जहाँ सारी इंद्रियाँ एक जगह एकाग्र हो जाती है। बुढ़ापे में दिमाग बच्चों की तरह हो जाता है | वह हर चीज़ के लिए जिद्दी और लापरवाह बन जाते है | बुढ़ापे में उन्हें हर बात के लिए लालच हो जाता है | उन्हें किसी भी चीज़ के लिए मना करो लेकिन वह अपनी बात पर अड़ जाते है | बुढ़ापे में बचपन की तरह व्यवहार हो जाता है | बच्चों की तरह बात-बात में तृष्णा करने लगते है |
Answer:
अपने जीवन में मनुष्य की तरह-तरह की कामनाएं होती हैं। बचपन, किशोरावस्था, युवावस्था तथा प्रौढ़ावस्था तक मनुष्य को जल्द-से-जल्द कामनाओं की पूर्ति की उतनी चिंता नहीं होती, जितनी वृद्धावस्था में। क्योंकि वृद्धावस्था में मनुष्य के जीवन के गिने-चुने वर्ष ही बचे रहते हैं। वह जीवन के बचे-खुचे वर्षों में अपनी कामनाओं को पूरा करने की हर हालत में कोशिश करता है। इसके लिए उसे बुरेभले, मान-अपमान की परवाह नहीं होती। इसलिए लेखक ने कहा है कि बुढ़ापा तृष्णारोग का अंतिम समय है।