Hindi, asked by ak4954724gmailcom, 11 months ago

बाय
का
माते
हुए
अकात और उसके कविता प्रतिधात
उसकी कालागत विशवाय
प्रकाश
डालरा​

Answers

Answered by shivam211022
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Answer:

‘कुछ बन जाते हैं’

उदय प्रकाश

तुम मिसरी की डली बन जाओ

मैं दूध बन जाता हूं

तुम मुझमें

घुल जाओ.

तुम ढाई साल की बच्ची बन जाओ

मैं मिसरी घुला दूध हूं मीठा

मुझे एक सांस में पी जाओ

अब मैं मैदान हूं

तुम्हारे सामने दूर तक फैला हुआ

मुझमें दौड़ो.

मैं पहाड़ हूं.

मेरे कंधों पर चढ़ो और फिसलो.

मैं सेमल का पेड़ हूं

मुझे ज़ोर-ज़ोर से झकझोरो और

मेरी रुई को हवा की तमाम परतों में

बादलों के छोटे-छोटे टुकड़ों की तरह

उड़ जाने दो.

ऐसा करता हूं कि मैं

अखरोट बन जाता हूं

तुम उसे चुरा लो

और किसी कोने में छुपकर

उसे तोड़ो.

गेहूं का दाना बन जाता हूं मैं,

तुम धूप बन जाओ

मिट्टी-हवा-पानी बनकर

मुझे उगाओ

मेरे भीतर के रिक्त कोषों में

लुका-छिपी खेलो या कोपल होकर

मेरी किसी भी गांठ से

कहीं से भी

तुरंत फूट जाओ.

तुम अंधेरा बन जाओ

मैं बिल्ली बनकर दबे पांव

चलूंगा चोरी-चोरी

क्यों न ऐसा करें

कि मैं चीनी मिट्टी का प्याला बन जाता हूं

और तुम तश्तरी

और हम कहीं से

गिरकर एक साथ

टूट जाते हैं सुबह-सुबह.

या मैं गुब्बारा बनता हूं

नीले रंग का

तुम उसके भीतर की हवा बनकर

फैलो और

बीच आकाश में

मेरे साथ फूट जाओ.

या फिर

ऐसा करते हैं

कि हम कुछ और बन जाते हैं…

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